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CSCISIO5015015105 विधानुशासन A5215RISTOISOISOISS
अत्यंत मुच्छल वासस्सन स्तनी चाचमत्यऽपि संकुच्या बाहुपादौ च तिष्टत्सं प्रेक्षते दिशः
॥२॥
॥३॥
प्रतिक्रिया विधानेना विधि रेवाऽस्य कटाते चित्रमूलऽपा मार्गः पिप्पलीसम भागतः पिष्टाग्रस्तस्य बालस्य कुदिप विलेपनं पंच वर्णाऽन्वितं मध्ये बलि मादाय खप्परे
॥४॥
धूम वस्त्र द्वयोपेता प्रतिमामुपारिन्येत् गंध पुष्पाक्षतं धूपं दीपं तांबूलऽमप्यऽर्चेत
त्रिरात्रं पात्र मुधत्य त्रिवार मंत्र वित् शुचिः
नीरांजन विधेः पश्चात् त्रिपधेतं निधापयेत् ॐ नमो भीषणी ऐहि ऐहि बलिं गन्ह गन्ह मुंच मुंच बालकं स्वाहा
इति बलि विसर्जन मंत्र: दूसरे दिन बालक को भीषणी नाम की कुमारी कष्ट देती है तब यह उसे कष्ट से ऊपर देखने में असमर्थ हो जाता है। डांया डोल हो जाता है। उर्द्ध श्वास लेने लगता है, दूध नहीं पीता है, हाथ पैरों को सिकोड़कर चारों तरफ देखता है। अब उसके प्रतिकार का उपाय कहा जाता है--- चित्रक की जड़, आंधी झाड़ा और पिप्पली के बराबर लेकर उस बालक के सामने ही पीसकर उसके शरीर पर लेप करे तथा पाँचों रंगों की मिठाई को। इस बीच में) लाकर नये खप्पर पर रखकरउसके ऊपर धुंये के रंग के दो वस्त्रों से ढकी हुई प्रतिमा उस सही की रखे और गंध, पुष्प, घावल, धूप, दीपक, पान, नागवेल से उसकी पूजा करें । रात्री के तीसरे भाग में उस बलि के बर्तन को उठाकर तीन बार मंत्र बोलता हुआ आस्ता करके उसको तिराहे पर रख देवें।
पूज्य चैत्यालये ब्रह्मा यक्षिणी चापि पूजोत् फिर पूज्य चैत्यालय में ब्रह्मा और यक्षिणी की पूजा करें।
पीडाकुमारी कारिण्या स्त्रतीय दिवसे शिशोः ऊर्दा क्षेपणऽमंगेषु लाला श्रावो मुरवे शिशो:
॥१॥