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SSIOSDISORDOISI05 विधानुशासन PASSOSDI5015ICISI विनयादि देवता पिंड नय तत्य निरोध और शून्य सहित वषट (यशीकरण) संयोषट (आकर्षण) उच्चाटन (हुं फट) मारण के बीजों की उत्तम मणि विद्या होती है।
भूर्जेलिरिवतै कैक स्वबीज सहितैः समंत्रोद्यः, इषान्मंत्रा नलिकांत्रितोहमयी र्वेष्टो द्विधितत्
॥२२॥
तैरेते: सप्तोत्तर विंशति संरव्यैजपत्सुधी मणिभिः,
मंत्री तमैव मंत्र प्रतिदिवस त्रि सुं संध्या सु : ॥९३॥ इस मंत्र को भोजपत्र के ऊपर वश्य आदि के अपने-अपने बीज मंत्र सहित लिखकर, त्रिलोह की नली में रखकर, विधिवत मंत्री एक सत्ताईस मणियों की माला बनाकर उसपर उसी मंत्र को प्रतिदिन दोपहर और सार्यकाल के समय जपे तो इच्छित कार्य सिद्ध होते हैं।
विषम फणि विषम शाकिनी विषम ग्रह विषम मानुषाः, सर्वे निविषत्व गत्या भूत्वा वश्याः स्युक्षो भमेति जगतः ॥९४ ॥
मणि विद्याया प्रभावः भयंकर सर्प, भयंकर शाकिनी, विषम ग्रह और सब विषम मनुष्य निर्विष होकर वश में हो जाते हैं और सम्पूर्ण जगत क्षोभ को प्राप्त होता है।
सामान्य मंडल एक तरौप्रेत गहे चतुष्पधे ग्राम मध्टो देशे वा, नगर बहि भूभागें मंडल मावर्तयेत् प्राज्ञ :
॥१॥
ईशान दिशि अभिमुख प्रपतित जले शल्य रहित सम भूमौ, हस्ताष्टक प्रमाणं नवरखंड मंडलं प्रवर
॥२॥
वर पंच वर्ण चूर्णं द्वार चतुष्कान्वितं लिखेत्,
विपुलं नाना केतु पताका दर्पण घंटा समन्वितं रम्यं ॥३॥ बुद्धिमान एक वृक्ष के नीचे प्रेत के घर में (श्मशान में ) चौराहे पर गांव के ठीक बीच में या नगर के बाहर एक मंडल बनावे । SISIOISTRARISTOTSISASTES५७८ PISTRISTORICSIRISTRISTRIES