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विधानुशासन
चंडिका मंत्रित श्वेत सर्षपै भाग ताडिता,
प्लवतेया जले क्रूरा साध्वी तत्र निमज्जति
॥ ९२ ॥
निम्नलिखित चंडिका मंत्र से पढ़े हुए सफेद सरसों के दानों को मारने पर जल में तैरने वाली निर्दय शाकिनी जल में ही डूब जाती है। ॐ फैं चामुंडै हिलि हिलि विच्चे स्वाहा ॥
इति चंडिका मंत्र:
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अपयात्यरिष्टणेमि मंत्रेण प्रतिकृति कृते छंदे, अभिजप्तया खटिकया ग्रह भूत पिशाच शाकिन्यः
॥ ९३ ॥
अरिष्टणेमि मंत्र को खडिया पर जपकर तस्वीर में या पुतले में छेद करने से ग्रह भूत पिशाच शाकिनीया दूर हो जाते |
अष्टौलघु पाषाणान दिशा सुपरिजप्प निक्षेपेतेन, चौरारि रौद्र जीवानन भयं सं जायते नान्यस्मिन
॥ ९४ ॥
और
इस मंत्र को आठ छोटे पत्थक के कंकरों पर पढ़कर आठों दिशाओं में फेंकने से चोर शत्रु भयंकर जीव तथा दूसरों से भी भय नहीं होता है ।
भय समाकुला डाकिनी सा प्रलापर्यंत तं मुक्ता कृत रोदना
तब भय से व्याकुल यह शाकिनी जोर से रोती हुई उसको छोड़कर बडबडा कर
॥ ९५ ॥
रोती है।
अद्यः पिछेड यंत्रस्तयो दरबलस्य समर्पितं,
मध्ये मुशल युक्तेन मूल मंत्रोण चार्पयेत्
॥ ९६ ॥
निम्नलिखित अद्यः पिछेड़ यंत्र को अपने पास रखकर उसके बीच में मूशल युक्त नाम को मूल मंत्र में लगा देवे !
भस्त जप्तैः कचै रज्वा कृतायतं प्रताडयेत्, वधीयादथवा दिश्य शाकिनी भूरि रोदिती
॥ ९७ ॥
फिर यंत्र को मरी हुयी खाल पर मंत्र को जपकर उस खाल के बालों की रस्सी बनावे। उस रस्सी से पीटने या बांधने से शाकिनी बहुत रोती है।
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