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RISIS5DISTRISTRICT विद्यानुशासन 51005015TI503585
गंधाक्षत कुसुमाद्यैः स्वकीय मंत्रैः प्रपूजयेत्सर्वान,
सामान्य मंडल मित भूत समुचाटलं प्रोक्तं ॥९॥ फिर सबंको गंध, अदात. पुष्प आदि से अपने-अपने मंत्रों से सबका पूजन करे। यह भूतों का उच्चाटन करने वाला सामान्य मंडल कहा है।
दटौक द्वौक द्वयैक वटोकान पूर्वादि दिक्षु विनि युक्तान, कमसस्तान द्वादश विद्या मंत्रान हे लोक पालानात्म द्वारं ॥१०॥
रक्ष रक्ष दिव्य गंधं पुष्पं दीप धूपाक्षतं बलिंचस्कं,
गन्ह द्वय होमांतान स्वकीय मंत्रान् बुध प्राहु : ॥११॥ दो एक दो एक दो एक दो एक इन पूर्व आदि दिशाओं के क्रमश लगाये हुए बारह प्रकार के मंत्रों से हे लोकपालों स्वीकार करोइन दिव्य गंध पुष्प दीप धूप अक्षत बलि नैवेद्य आदि के होम को दो बार गृन्ह गृन्ह कहकर दो बार रक्ष रक्ष कह कर ग्रहण कहे ऐसा पंडित ने कहा।
ॐ हीं कौ क्षम्ल्यू झाल्यूँ स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपिरवार हे इंद्र एहि-एहि संवौषट आह्वाननं ॥
ॐ ह्रीं क्रौ धम्ल्यू हाल्वर्य स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपरिवार हे इंद्र अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।।
ॐ हीं क्रौं क्षम्ल्यूँ हाल्ट स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपिरवार हे इंद्रम सन्निहितो भव भव वषट् स्वाहा सन्निधिकरणं॥
ॐ ह्रीं क्रौ मल्ल्यू हम्ल्यू स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपिरवार हे इंदआत्म द्वारं रक्ष रक्ष इदं अटो पाद्यं गंधमक्षतं पुष्प दीपं धूपं चरुं बलिं फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं च गन्ह-गन्ह स्वाहा अर्चनं ॥
ॐ ह्रीं क्रौं भल्व्यू हाल्ल्यू स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपिरवार हे इंद्र स्वास्थानं गच्छ-गच्छ जः जः जः विसर्जनं॥
ॐ ह्रीं क्रौ मल्च्यू रक्त वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपिरवार हे अग्ने तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॥
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