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OSDISORDOISOS विधानुशासन 505501505 फूलमाला आदि से पूजकर उस बलि पर रखे। पहले कहे हुये द्रव्यों से एक हवन कुण्ड की रचना करके अग्नि में आहुतियाँ नूमी को आठ द्रव से शुद्ध करके देवे- अर्थात होम मंत्रपूर्वक करे। फिर घर से पश्चिम भाग की तरफ रात में सात दिन तक पवित्र होकर मंत्र बोलता हुआ निर्भय होकर बालक पर उतारकर बलि देवे। नीम के पत्ते,सर्प, कांचली, सफेद सरसौ, लहसुन और कपास के बीज (विनोले) को बराबर लेकर चूर्ण करके इससे बालक को धूप देवे। फिर पांचों पत्तों के पकाये हुए जलसे बालक को स्नान कराये और पूर्वोक्त क्रम से चैत्यालय में ब्रह्मा और अंयिका देवी का पूजन करे । अन्त में पूर्व विधान के अनुसार आचार्य का वस्त्र और आभूषणों से सत्कार करे। इस प्रकार बलि विधान के करने से नलिली नाम की देवी बालक को छोड़कर चली जाती है।
नवमं यत्सरे बालं गन्हाति कल हंसनी, गहीतः सोपि महता ज्यरेण परिपीडयते
॥१॥
दाहोपि देहे सुमहान दुःसहोति च वर्तते. बले विधानं तस्टीय कथ्यते मंत्र पूर्वकां
॥२॥
प्रियंगु श्यामकं ब्रीहियवा नाल्चंदनं हविः, दध्योदनं बीही लाजा क्षीरं लोहविनिर्मिते
||३||
भाजने प्रतिमां चापि सौवर्णी पल निर्मितां, रक्तवासो युगछन्नां गंधायैर चिंतांश्रुचिः
॥४॥
विन्यस्य होमं कुर्वीत दध्यान्मे नाहुती देश, परिषिंचेत् ततो दहि द्विवारं सलिलेन च :
गृहस्य पूर्व दिग्भागे संध्यायां पंच यासरं, विदधीत बलिं मंत्री श्रुचि मंत्र पुरस्सरं
॥६॥
पंच पल्लव नीरेण कुर्यादलाभिषेचनं, सिद्धार्थ रंजनी व्याधि वसा गुंजन मंभसा
॥७॥
समांशेन यिनिष्य कुदिपुषि लेपनं,
गजदंतं पशोईतं नरवान् केशान समाशिनः, CSCSRIDICISCISIO5051५३१ PISTRISTOTRISADRASIDISCIEI