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STERIOTECTRICISE विधानुशासन ISIOTICIRRIDORIES
मंत्रयित्वा त्रिरात्रं तं बलिं मंत्रेण निक्षिप्त पूजयेत् ब्रह्मा देवं च यक्षिणीमपि पूर्ववत्
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एवं कृते विधाने स्मिन मुंचते साग्रही तदा मांत्रिके पूज्यते स्वर्ण वस्त्राये भक्ति पूर्वक न सिद्धयति विद्यानेन कुत्रापि ग्रहमोक्षणं
॥१०॥ ॐ नमो हसनि ऐहि ऐहि बलिं गन्ह गन्ह मुंच मुंच बालकं स्वाहा ।
इति षष्टोदिवसः छठे दिन बालक हसती नाम की कुमारी के पकड़ने पर बालक दुःख पाकर बराबर अंगडाई लेता है।आकाश की तरफ देखता है। बायें हाथ की मुट्ठी बंध जाती है।जीभ घुमाता है। ऊँचा श्वास लेता है और जोर जोर से रोता है। इस विकार को शांत करने याली औषधि आदि का वर्णन कियाजायेगा। हडताल,भेंडकामी, लोध मेलसिला और ना समान भाग लेकर सबसे पीसकर लेपकरें, अथवा बकरी के दूध से पीसकर दाभ मिलाकर लेप करें।भेड का सींग, सर्प की कांचली पशु के दाँत और सरसो के बराबर लेकर घी के साथ लेप करे, यह दूसरा लेप कहा है । सफेद सरसों, नीम पत्र पशु के दाँत और सर के बालों को समान भाग लेकर बालक के सामने धूप देवे । आचार्य एक बड़े ताँबे के बर्तन में ईस का रस को गंध, अक्षत आदि पान ,हित रखकर दो लाल वस्त्रो से ढ़की हुई लाल फूल माला से घिरी हुई लाल चंदन से पुती हुई यदिणे की सीरे की प्रतीमा को रखे । उसको घर के पूर्व दिशा में गाँव के बीच में तीन दिन तक आभि मंक्षित करके तीन रात तक बलि को रने । चैत्यालय में परम ब्रह्म सर्वक देव और यक्षिणी की पूर्व क्रमानुसार पूजन करे इस प्रकार बलि विधान करने पर वह सही बालक को छोड़ देती है |फिर स्वर्ण वस्त्र आदि से मंत्री की पूजन करे ऐसा भलि पूर्वक न करने पर कार्य की सिद्धि नही होती है ग्रह से छूटना तो असंभव बात है
ग्रह्णा मुक्त के शीभि सप्रेम देवता दिनः गृहीतः काक वान्देन रोदि तोषः तदा शिशु
॥१॥
दधि गंधोवस्टा पुषिदेह स्तपति सततं प्रति दाणं करोत्तोष शरीरस्य विमोटनं
॥२॥
प्रति कारोपि विकृते औषद्यादभिः साध्यते निशा द्वयं वचा कुष्टं सिद्धार्थान समभागवत्
॥३॥
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