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SERISO150150155 विधाबुशासन DIDRESIDEOSIOTISIOIST
स्यनरवै गप्रिलेपश्च स्तनाभोजन मेवच भवेतदानीं तस्या श्रुमाषणां कदली फलं
॥४१॥
शुद्धानं च सुगंधादि बलिं दद्यात्पयत्नतः पूर्वस्यां दिशि सायान्हे वलि मंत्रेण्यमंत्र वित्
॥४२॥
यचा सिद्धार्थकं कष्टं गोमत्रेणाऽनलेपटोत
धूपये ध्याय करजै स्ततो मुंचति सा ग्रही ॥४३॥ गदि रात दिन कामको सुराक तार की जड़े तो बालक कौये के शब्द के समान रोता है। उसके शरीर में श्येन (बाज पक्षी) के समान गंध आती है। बच्चा नखों से अपने शरीर को टटोलता है और दूध का भोजन नहीं लेता है। उस समय उड़द केले की फली शुद्ध भोजन और सुगंध आदि की बलि को मंत्री मंत्रपूर्वक सायंकाल के समय पूर्व दिशा में दें।उससमय वद्य सफेद सरसों कूठ की गोमूत्र से पीसकर लेप करे। और व्याघ्र करज नस की धूप दे। तब यह ग्रही बालक को छोड़ देती है।
ॐ नमो भगवती सुभटे रावण पूजिते दीर्य केशी पिंगलाक्षी लंब स्तनि शुष्कगात्रे ऐहि एहि ह्रीं ह्रीं क्रौं कौं आवेशय आवेशय इमं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा।
आठवें दिन की रक्षा
अष्टाह जातं बालंतु गन्हाते मद्य शासना तदा भवे ज्यरःश्योशो हासउ द्विग्र रोदनं
॥४४॥
माषोदनं पंच भक्षे ग्रामस्योदेशत् : बलिं निदद्या त्सांयान्हे मंत्र पूर्व विचक्षणः
॥४५॥
हिगूगगंधा लसुन सिद्धार्थे : श्व प्रलेपयेत् नस्य के शेस्व लसुनै धूपोद्वालकं द्भुतं
॥४६॥
स्नापटोत्पत्र भंगेन पूजोत्कणवीरजै:
पुष्पै गधा दिभि ईवीं मुचंद्रालं ततो गही OTECISIOIDOESRIRISOTE ४५३ PASSIS5I0RECTRICISIONSIDER
॥४७॥