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5050150151215105 विधानुशासन HSTRI5DISTTISTICISIOASS ॐ नमो भगवति समसेन के सर्व देवप्रिय ऐहि ऐहि हीं हीं क्रौं क्रौं इयं बलिं गन्ह गृह बालकं मुंच मुंच स्वाहा ।
सत्ताइसवें दिन की बालक की रक्षा विधान
सप्त विंशत्य हो जातं गन्हीते जन्य शारीका तदा भवेत् अतीसारो ज्वरश्च बहु विक्रिया
स तिलं क्षीर भक्तं च माषाऽनं कसरं तथा बलिं सूर्य दिशं उनमंत्रण स्वपाउरूणोदयेः
॥१०७॥
वचा लसून गोमूत्रै लॅपये पटो दऽपि
निर्माल्य सर्प निर्मोकैः पत्र भंगा च्च सिंचयेत् ॥१०८॥ सत्ताइसवें दिन बालक को जन्य सारिका ग्रही के पकड़ने पर बालक के दस्त बुखार और बहुत प्रकार के विकार हो जाते हैं। इसके लिये तिल दूध का भोजन उड़द का अन्न खिचड़ी की बलि को मंत्र पूर्वक पूर्व दिशा में सूर्य के उदय होने के समय अर्थात् प्रातःकाल दें। यच लहसून को गोमूत्र से पीसकर बालक के लेप करे तथा निर्माल्य (पुजापा) और सर्प कांधली की दूप दे। तथा पत्र भंग जल से बालक को स्नान करायें।
ॐ नमो भगवति जन्य सारिके बाल घात मेणहिनि ऐहि ऐहि ह्रीं ह्रीं कौं क्रौं इथं बलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा।
अट्ठाइसवें दिन की रक्षा
अष्ट विशंत्य होजातं गन्हीते नडाधरा तदा तस्या सदा हासश्चो द्विग्नत्वं च जायते
॥१०९॥
तिल चूर्ण माष भक्तं कोद्रवं सूप मेवच न्यसेलिं च सायान्हे श्मशाने मंत्रपूर्वकं
॥११०॥
सित सर्षप गो भंग गोमूत्रेण प्रलेपयेत् गुगलं पिच्छ नालं च धूपना शाम्यति ग्रही
॥१११॥ 0521510505TOISEXSTRE४६५ PISTOISTRISIOSIST5015015