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CBIDI501501501525 विधानुशासन 505051015105505
ॐनमो भगवति स्वेनिकायै बलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंचकुमारिकायै स्वाहा। छठे वर्ष में बालक को स्वैनिका ग्रही पकड़ती है उसके पकड़ने मात्र से बालक भयंकर रूप से रोता है। वह आकाश की तरफ बार बार देखता है और मिन मिन करके बोलता है उसको ज्वर और अतिसार निस्सन्देह हो जाता है। उसके लिये भात, खीर, दही, खिचड़ी, पुरी, कचौरी और सुगंधित धूप दीपादि सहित सात रात तक उत्तर दिशा में क्रम पूर्व मंत्र पढ़ते हुये बलि दे। तथा भेड के सींग गाय के दांत अथवा गाय के नाखूनों की बालक के धूप दें। बालक को पत्र भंग जल से स्नान कराये ऐसा प्रयत्न करने पर वह ग्रही छोड़ देती है।
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सप्त वार्षिक माधत्ते उग चामुंडी नामिका निस्वासोपि च दिवारानं भूमौ पातो ज्वरोऽरूचि
॥१९४॥
पायसं पूरिका पूपं कुल्माष कसरं दधिः चतुः संध्यादु दीच्यां तं दर्भेषु बलिमा हरेत्
॥ १९५॥
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धूपये ज्जतुका पूप फल पत्र समायुतं
एवं सप्त दिनं कुर्यात् ततो मुंचति साग्रही ॐनमो भगवति कुष्मांडी देवि उग्रचामुंडी जुहुयं मुंचमुंचदह दह पच पच उसर उसर
बलिं गृह गृह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। सातवें वर्ष में बालक को कुष्मांडी ग्रही के पकड़ने पर बालक रात दिन जोर से श्वाष लेता रहता है वह जमीन पर लोटता है तथा उसको बुखार और अरूचि हो जाती है। उसके लिये खीर, पुरी, पुये कुलथी और दही की बलि को चारों संध्याओं में उत्तर दिशा में डाभ के ऊपर दें। और लाख पूवे फल और पत्तों की धूप दे इसप्रकार सात दिन करने से वह ग्रही बालक को छोड़ देती है।
अष्ट वर्ष वयो बालं गृहीते राक्षसी ग्रही रोदनं गर्जनं चाऽपि त्रसनं च भवेत् तदा
॥१९६॥
पायसं कसरं पंच भेदभक्षयतं तथा कुल्माषं माष चूर्ण धूपं गंधादि संयुतं
॥१९७॥
तद्दद्यार्थऽर्द्ध रात्री सप्त रात्रं बलिं हरेत् सर्प निम्मोक निगंडी पिछला लसुन धूपयेत्
॥ १९८॥
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