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5051215015121505 विधानुशासन 20550512505RISH
चतुर्थ मास
चतुर्मास वयस्य तं गन्हीते सा परान्मुरवी तया गृहीत मात्रेण कं पते दक्षिणे करे:
॥१३१।।
सीरं पिवति विश्रश्च तत्तक्षणात् वमति ध्रुवं दारूणं रोदिति श्वेत वर्ण स्यात् शरीरक
॥१३॥
पूति गंधं भवेत्तस्य मुखं च परिशुष्यति न मंत्रं नौषधं तस्य बलिं चापि न कारयेत्
|१३३॥
तथाऽप्टोकां बलिं कुर्यात् मंत्र वादी प्रयत्नतः पत पकऽम पूपं च माषाम्नं माहिषं दधिः
॥१३४॥
पंच वर्ण च गव्यं पयो न्यसेत श्मशान के सप्त रात्रि तथा कुर्यात् देवपूजां च कारयेत्
॥१३५॥
भोजयेत् च मुनीन् सम्यक चतुर्विशति संमितान
आगमाय च वस्त्रादि दद्यात् एवं प्रशाम्यति ॥१३६ ॥ ॐ नमो भगवति परान्मुखी देवते सर्वजन विद्वेषणी कशगात्रे दुनिरीक्षणे सर्वभूत पिशाच पूजिते विकट दंष्ट्रोत्रिनेत्रे ईश्वर प्रिटो एहि एहि ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं इमं बालं रक्ष रक्ष बलिं गृह गृन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। चौथे मास में बालक को परान्मुखी देवी के पकड़ने पर बालक का दाहिना हाय बहुत काँपने लगता है। बालक दूध भी कठिनता से पीता है उसीसमय वमन करता है बहुत जोर से रोता है। उसके शरीर का रंग सफेद हो जाता है। उसमे गंध आने लगती है उसका मुख सुख जाता है। उसके लिये कोई मंत्र नहीं है उसके लिये कोई औषधि नहीं है। उसके लिये कोई भी बलि नहीं करनी चाहिये। तो भी मंत्र यादि उसके लिये एक बलि यत्नपूर्वक करे घी में पके हुए पूर्व उड़द का अन्न और भैंस का दही, पाँचों रंगों की नैवेद्य और गाय के दूध की बलि को श्मशान में रखे सात रात्री तक इसप्रकार करे और जिनेन्द्र देव का पूजन करावें । चौबीस एकत्रित मुनिराजों को भोजन करायें और शास्त्रों के लिये कपड़ा दे इसप्रकार वह ग्रही शांत हो जाती है।
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