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CHRISTRISTRIPASICS विधानुशासन HORSCIEDISCIEDIA
ऊर्ध्वचासोऽसकृद्रोध स्तमाभोजन मेवच भवेद्विकारः शुद्धानं पंच भक्ष समन्वित
॥ ३५॥
मन्मय प्रतिमा रक्त चरु पुष्पगंधा दिशोभिमतां बलिं दद्यात् पृप्रशाने च सायान मंशपर्वत
॥ ३६॥
॥३७॥
श्वेत सर्षप संयुक्तं वाजि दंतं स गुग्गुलं साऽमयं पत संयुक्तं पेषयित्वा प्रलेपयेत् गौरोम सर्षपान पिधान यतेन सह धूपयेत् पत्र भंगेन च स्नायात ततो मुंचति साग्रही
॥३८॥
वेणारऽश्वत्य निर्गुडो पाठे रंड योरिप पत्रेण पक्क सलिलं पत्रं भंगं प्रयक्षते
॥३९॥ यदि बालक को छठे दिन मर्मणा नाम की ग्रही पकहती है तो हाथ पैरों का खिंघना, अतिमूत्र होना, ऊपर को श्वास चलना कभी कभी रूक भी जाता है और स्तन के दूध का भोजन करना आदि विकृत हो जाता है। इसके लिए शुद्ध अन्न पाँचो प्रकार के भोजनमिट्टी की प्रतिमा लाल नैवेद्य पुष्प
और चंदन आदि गंध से शोभित बलि को सायंकाल के समय श्मसान में मंत्रपूर्वक दे। फिर सफेद सरसों सहित घोड़े के दांत गुगल घृत को समान लेकर पीसकर लेप करे। गाय के बाल तथा सरसों को पीसकर घी मिलाकर धूप दे। फिर पत्र भंग जल से स्नान करे। ऐसा करने से वह ग्रही बालक को छोड़ जाती है। बांस पीपल निर्गुड़ी पाठालता और एरंड के पत्तो को जल में पकारने पर वह जल पत्र भंग कहलाता है।
ॐ नमो भगवतीमर्मणे रावण पूजिते दीर्घकेशी पिंगलाक्षी लंब स्तनि शुष्क गात्रे ऐहि ऐहि ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं आवेशय आवेशय इयं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्याहा॥
सातवें दिन की रक्षा
सप्ताह जातं गन्हाति सासभटा नामिका ग्रही रोदनं काक वतश्येन गंध शरीरकं
॥ ४०॥ Nಣಡಡಣಪಡಣg Y4R9NNNNN