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ISSI5015015015105 विधानुशासन 7510050ISTRISSISTS
दैवतायै तपिस्विन्यै ब्राह्मणा तपोभूतै जायतराय वा पुर्व प्रधात् जल पूर्वक
॥२५॥ देवता तपस्वी ब्राह्मण मुनि अथवा किसी दूसरी जाती वाले को जलपूर्वक दें।
कत्वैज्यां जिननाथ स्यपंच वाद्य युतान पुनः दंतान स्वर्ण मयान्टाक्ष्यै प्रदद्यात्त पूजटोच्चतां
॥२६॥ तथा जिनेन्द्र भगवान की पूजन करके पांच आदि लेकर भोजन सामग्री और सोने के बने हुए दांत यक्षिणी को देकर उसका पूजन करें।
भोजयेद्यमिनं शांतिः श्राविकां श्रावकानपि: दोषैः
शाम्येत्सएतस्मिन् विहितै शांति कर्मणी: ॥ २७॥ तथा मुनियों श्राविकाओं आर्यिकाओं व श्रावकों को भोजन करावे इस शांति कर्म के करने से दोष शांत हो जाते हैं।
सितस्य सिंटु वारस्य मूलं प्राग्दिर समुद्भवं कंठे बद्धं कुमारस्य दंतोत्पत्ति रूजापह
|॥२८॥ पूर्व दिशा में उगी हुई सफेद सिंदुवार की जड़ को बालक के कंठ में बांधने से दांतो से पैदा हुये दोष शांति को प्राप्त होते हैं।
शंखपुष्पी यचा निंबाक्षिरिणी नां शिफा:पथक
दंत जन्म रूंजा हन्युः शिशुनां कलितागले ॥ २९॥ शंखा हूली वच नीम अक्षीरणी (खिरणी) की जटाओं को पृथक पृथक लेकर बालकों के गले में बांधने से दांतो को रोग नष्ट हो जाते हैं।
॥ बुद्धि वर्धक दवायें। लिहन क्षीरेण तैलेन सर्पिषा वारजी कृतं षयान्निरिवल ग्रंथान धारयेच न विस्मरेत्
॥३०॥ दिन के समय दूध तेल या घी के साथ चूर्ण की हुई षड्या( सफेद वच) को सेवन करने से सम्पूर्ण मंथों का स्मरण कर सकता है और कभी नहीं भूल सकता?
यष्ट पतेन षङ्गयां हिरण्यं च समं लिहन
बालः सुरासुर गुरुं पूजो द्विधया धिया CHHOTISIOTSIOISTOTRIOTSTATE ४४३ P5105IDISTRISTRISIOTSOTES
॥३१॥