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15951 विधानुशासन 259595955
ब्राह्मी तुरंग गंधा षथा विश्व कुष्टकणा चूर्णाः लीढा प्रातः सघृतो ख्यातो मेघाभि वृद्धि कर
॥ ३७ ॥
ब्राह्मी असगंध सफेद वच सोंठ मीठा कूठ पीपल के चूर्ण को प्रातः काल घी के साथ चाटने से बुद्धि का बहुत विकाश होता है ।
ब्राह्मी श्वेत वचा सितराजी स्वामार्क विल्व पुष्पाणां चूर्ण स पंचगव्यं प्रातः लीट्वा भवेत श्रुतंद्रकं सफेद सरसों (राई) काला आक और बिल्व के फूलों के चूर्ण को गोबर मूत्र) के साथ चाटने से बड़ा भारी पंडित हो जाती है।
ब्राह्मी श्वेत व के दूध घी दही
त्रिवृतो कृमि हृद्र व्योषोग्रा वरा पटु निशा सिता पिष्टवा ब्राह्मी रसे सर्पिषा धिकं विवर्द्धयेत् धियं
शूंठी द्विनिशा दीपक जीरक रूक यष्टि मधु कणो ग्राणां चूर्ण सघृतं लिहतः सरस्वति वसति रसनाया ॥ ३९ ॥
सोंठ दोनो हल्दी अजमोर जीरा कुछ मुलहटी शहद पीपल अजवाइन के चूर्ण को घी के साथ चाटने से जिल्हा में सरस्वति वास करती है।
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त्रिवृतो (निसोथ ) कृमिद्र (वाय विडंग) व्योष (सोंठ, मिरच, पीपल) उग्रा (यच) वरा (त्रिफला हरड़ा, वहेडा आँवला) पटु (खारी नमक) निशा (हल्दी) सिता (मिश्री) को ब्राह्मी के रस में भावना देकर घी से साथ सेवन से वृद्धि होती है।
कुष्टाश्वगंध सैंधव पिपली मिरचं द्विजीरकं शूंठी पाठा जमोद सहिता समभाग विचूर्णति बचया
३८ ॥
पंच गव्य (गाय
शिगु व्योष वचा पाठा विजया लवणौः । पलै अजाक्षीर घृतं प्रस्थं सिद्धं सारस्वतं घृतं
॥ ४१ ॥
त्रिकृतो (सहेजना) व्योष (सोंठ मिरच पिपल) यच पाठा लता विजया (भांग) नमक चार तोले बकरी के दूध में सिद्ध किया हुआ एक प्रस्थ घृत डाला हुआ सारस्वत घृत है ।
प्रातः सित सर्पिभ्या विभीतक फल मात्र लेह्य सप्ताहं पथ्यासी किश्वर मधुर स्वरो भवति
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॥ ४२ ॥
॥ ४३ ॥
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