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CISIO501512151015TOST विद्यानुशासम ASTRIOTSTO51005015
प्रपुन्नाट शिफां किंचित क्षुणा यौनौयताभवेत् क्षुणा सतैला वर्षाभू शिफा वा सुरव सूतये
॥३४॥ पवांड की जड़ तथा क्षुणक (अरीठा) को योनि में रखने से अथवा शुणास तेल (अरीठा का तेल) को और सांठी के तेल की योनि में रखने स सरलता से प्रसव हो जाता है।
यौनो न्यस्तं च पाठाया मूलं मायूर कस्य वा प्रस्तावरोळ कृष्ण सकृच्छप सवामपि
॥३५॥ पाठ अथवा अजमोद के मूल को योनि में रखने से अत्यंत कष्ट से पीड़ित स्त्री को भी सरलता से प्रसय हो जाता है।
रंभा जंघा तिलोशीरिपामार्ग पारिभद्र तरुणां
हेम्र कारंड स्य च मूलं सूत्यै पृथक कटि बद्धां ॥३६॥ केला काक जंधा (हुल हुल) तिल खस चिरचिटा नीम धतूरे का पौदा अलग अलग कटसरया झिंगी= कुरंड की जड़ को कमर के बांधने से प्रसव हो जाता है।
शीरी हिरण्य पुष्पा सुवर्चला य यांधि पामी तले
संघार्यते प्रसूति स्तस्या स्टा न्निमिष मात्रेण । ॥३७॥ शीरी (मूंज) हिरण्य पुष्पा सुवर्चला (अलसी) को पैर नीचे रखने या लगाने से क्षण भर में ही प्रसव हो जाता है।
करे सिरसि वाऽथ पुरखा गर्भ निर्गमयेद्
पता यद्वा मूर्द्धनी विन्टास्ता द्विश स्तु क्षीर विंदवः ॥३८॥ पुंखा (सरपुंखा ) को हाथ या सिर पर रखने से अथवा गाय के दूध की बूंदों को सिर पर रखने से प्रसय हो जाता है।
पुरु भूर्ज फणि त्वग भियौंनो धूपः प्रसूति कत्
(राजिका भी पाठेहे सर्जिका सर्प निम्मौकाभ्यां भवेत् भगे ।।३९ ।। गूगल भोजपत्र सांप की कांचली की योनि में धूप देने से अथवा सज्जी सांप की कांचली की ही योनि में धूप देने ही प्रसय हो जाता है। SSIRIDDESIRISESSIRIDIOM ४३४ DISTRISTOR51015IOTECISCESS