________________
SASTRISCISSISTA5105 विधानुशासन 35015015015015015 पाठा लता फालसे हलिनी (लांगली) मकोय काकोशिफा (हुलहुल) सूरजमुखी वायस जघा) की जटा को पृथक पृथक पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से प्रसव हो जाता है।
पिष्टं गज मल छत्रं पप्यण छद एव था। अयो नाभःसमा लिप्तम दारवेन प्रसावयेत
॥२८॥ हाथी की लीद छात्र (छितोना) पयस्या (क्षीर काकोली) के पत्रों को पीसकर नाभी के नीचे लेप करने से बिना कष्ट के प्रसव हो जाता है।
रुजा फलेन्दु सिद्धार्थ शालिमूले विलेपनं कल्किते राज पत्रेण गर्भ सपदि पातयेत्
॥ २९॥ रूजा फल कपूर सफेद सरसों और चायलों की जड़ राजपत्र राई के साथ कल्क बनाकर लेप करने से शीघ्र ही गर्भ गिर जाता है।
तितं सबसला मूलं लिपत्सलिलं कल्कितं परितो योनिमेतेन सद्यः सूति रुदाहृता
॥३०॥ तिल वसलामूल (पोई की जड़ उपोदिकी) के सहित जल में बनाये हुए कल्क को योनि के चारों तरफ लेप करने से शीघ्र ही प्रसय हो जाता है।
स्वर सगर्भसं संगे विशालाया निवेशयेत् अंतोनि तदेव स्याद् गर्भशल्या विनिर्गमः
॥३१॥ इंद्रायण के स्वरस को योनि के अन्दर डालने से गर्भ का कष्ट तुरन्त ही दूर हो जाता है।
पक तिलोद्भवं ख्या- विशल्या स्वरसेन च हस्ति गो परा संगौ गुह्य नाभि करांधिगं
॥३२॥ कलिहारी के रस तथा तिल के तेल में पके हुए हस्तिकंद (हस्तकंद) और अपरासंग की नाभियोनि हाथ और पांव के लगाने से प्रसर हो जाता है।
रक्तिकायाः शिफाश्वेत गवाक्ष्या वा समर्पिता मुखे गर्भाशय स्याशुगर्भ पाताय जायते
॥३३॥ रक्तिका (गुंजा की जटा) सफेद गवाक्षी (गरडुबे) को गर्भाशय के मुख पर रखने से शीघ्र ही गर्भ गिर जाता है।
SSCADDISCCSIRISTOTO ४३३ PSIDASICTERISTICISIOTSTRIES