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विधानुशासन
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गले पर नया वस्त्र लपेटे हुए मुख पर विजोरा रखे हुए अक्षत पुष्प नैवेद्य धूप दीपक आदि से पूजे
हुवे ।
दश कुंभान् निधायैतां शांति मंत्रेण मंत्रयेत् एक रात्रं त्रिरात्रं वा दश दिक्षु यथाक्रमं
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दस घड़ों को रखकर उनपर एक रात्रि तीन रात्री या दश रात्री तक क्रम से शांति मंत्र से अभिमंत्रित
किये हुए।
तद्विगात् घटांभोभिः सिंच मंत्रेण मंत्रवित् दिशां वंधं च कुर्वीत रक्षा दिक्षु विनिक्षिपेत्
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इन दिशाओं में रखे हुए घड़ों को चतुर मंत्री मंत्रपूर्वक जल से सींचता हुआ सब दिशाओं में रक्षा करने के लिये दशों दिशाओं का बंधन करे ।
एवं रक्षान्वितं गेहं त्यक्त दुष्टाग्रहादिकं गर्भिणीं प्रविशन्मासि दशमें सुख सूतये
॥६॥
इसप्रकार रक्षा किये हुए दुष्ट ग्रह हटाये हुए उस घर में गर्भिणी को सरलता से बच्चा उत्पन्न कराने के लिये दसवें मास में लायें ।
इति सूतिका ग्रह रक्षाविधानं
दिशि विदिशि तद्भयांतर्वर्त्तिन्यादिशतु पृच्छ्रकं मंत्री क्रमेश बालंबाला नपुंसकं पूर्ण गर्भिण्याः
॥ १ ॥
यदि कोई पुरुष गर्भस्थ संतान का फल पूछने आये तो यदि यह पूछने वाला दिशाओं की तरफ मुख करके खड़ा हो तो लड़का होगा । यदि यह विदिशाओं की तरफ मुख किये हुए हो तो लड़की होगी । यदि यह दिशा और विदिशा के बीच में मुख किये हुए हो तो नपुंसक संतान होगी ऐसा बतावे
विलोमोच्चारितो नाभिमंत्रितं तिलजन्मवत् मृत्युंजयेन त्वक सेको मूर्द्धा कृच्छेणासावयेत
॥ २ ॥
सौ से एक तक संख्याओं को उल्टा बोलने से जन्म के समय तिल को अभिमंत्रित मृत्युंजय मंत्र से करके इसके द्वारा शरीर की खाल का सैक करने से गर्भ का कष्ट दूर हो जाता है।
ॐ फणि फणि उत्पदहथ मुंच मुंच ठः ठः
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