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551 विधानुशासन
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(१६) ॐ ह्रीं कामबाणायै देव्यै नमः (१७) ॐ ह्रीं सानंदायै देव्यै नमः (१८) ॐ ह्रीं नंदमालिन्यै देव्यै नमः (१९) ॐ ह्रीं माया देव्यै नमः (२०) ॐ ह्रीं मायाविन्यै देव्यै नमः (२१) ॐ ह्रीं रौद्री देव्यै नमः (२२) ॐ ह्रीं कला देव्यै नमः (२३) ॐ ह्रीं कालि देव्यै नमः (२४) कालीप्रिया दैव्यै नमः
इसके बाद दश दिक्पालों को दसों दिशाओं में लिखकर ह्रीं कार के तीन आवर्त लगाकर क्रों से निरोध करें।
फिर इस यंत्र की विधिपूर्वक पूजन पंचोपचारी अष्टद्रव्य से करके सर्वदेवाधिक का आदरपूर्वक विसर्जन करें।
श्री पार्श्वनाथाय नमः
॥ अय: धांणा यंत्र साधन विधानं लिख्यते ॥
साध्यस्य नामावृत तत्य बाह्यं ऊष्मादि वर्ण विलिखेत्यै लसांत अष्टाब्ज पत्रं कुरु तस्य वाह्यं क्ष्मादि वृतो घोणस मेकपत्रे
शेषेषु पत्रे च शेष वर्णान लिखेद्वराद्यक्षर बाह्य भागे माया वृत्तं घोणसटा सत्प्रसिद्धं करोतिषट्कर्म विधानं सिद्धिं ॥ १ ॥ तत्व ह्रीं के अंदर साध्य के नाम को लिखकर उसके बाहर उष्मादि वर्ण लस तक लिखे उसके बाहर अष्टदल कमल बनाकर एक पत्र में क्ष्मा आदि से युक्त घोण मंत्र को लिखे और शेष पत्रों में शेष वर्णों को लिखे उसके बाहर वर विहंगम आदि मंत्र के लिखे फिर उसके ह्रींकार से वेष्टित करे। यह घोणादेवी का सब छहो कर्मों के विधान की सिद्धि करता है। अस्य यंत्रोद्धारः क्रियते
इति कर्णिकायां लिखेत तद्वा क्रौंकार
निरुद्ध ह्रीं कोरण त्रिधा वेष्टयेत तद्वहि
ॐ नमो भगवते श्री घोण से हरे हरे बरे बरे तरे तरे वः वः बल बल लां लां रां रांरीं री के रौं रौं रस रस लस लस इत्यादावार्य वहिर ऽष्ट पत्रेषु पूर्वादि पत्रेषु क्ष्मां क्ष्मीं क्ष्क्ष्क्ष्मः ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रीं ह्रः नमः श्री घोणसे घ घ घसससससहहहह चचचचचठठ ठ ठ ठ त त त त त गगगगग इत्या लिख्यते तद्वाह्ये वलये वर विहंगम भुजे क्ष्मां क्ष्मीं क्ष् क्ष्मों क्ष्मः : ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं ह्र: ह्रीं शोषय शोषय शेषटा रोषटा ॐ आं क्रों ह्रीं हः जः जः ठः ठः ॐ ह्रीं श्रीं घोणसे नमः इत्यनेन संवेष्टय ह्रीं कारण वेष्टयेत एतेन षट्कर्म सिद्धिः
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