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CHECI5015015RISO15 विधानुशासन VIODRISIOISTO505
हिंगु दलाष्टमांशेन कृत्वा लोदया च तं पिबेत् निरानं पंच रात्रं वा यावत शवति शोणितं
||१४॥ उसका आठयां भाग हिंग मिलाकर तथा सब को जल में मथकर तीन रात या पांच रात तक स्त्री का रस निकले पिलावें।
ततौ यौनौ विशुद्धायां पश्चात् दद्यान्महोयधि लक्ष्मणां क्षीर संयुक्तं नासे पाने च दापयेत्
॥१५॥ फिर योनि के शुद्ध होने पर दूध के साथ उसी लक्ष्मण औषधि को सुंधावे और पिलायें।
लसा ससले गर्म लाणोक्तं स पंडितां - नाना कला समायुक्तं धीरं जनन रंजका
॥१६॥ उससे स्त्री उस लक्षण याले विद्वान अनेक प्रकार की कलाओं से युक्त धीर और उत्पन्न करने वालों को प्रसन्न करने वाली गर्भ को धारण करती है।
यस्या पित्त हतं पुष्पं फलं तस्या न विद्यते तत्र पित्तं हतं पुष्प प्राज्ञः समुपलक्ष्ोत्
॥१७॥ जिस स्त्री का रज पित्त के विकार से बिगड़ा हुआ हो उसके पुत्र रूपी फल नहीं होता विद्वान उस पित्त से बिगड़े हुए रज को अच्छी तरह पहचाने ।
पक अंबु फलाकारं कृष्णं श्रवति श्रोणितं कदि शूलं भवेत्तस्या उदरं च प्रदह्य च
॥१८॥ ऐसी स्त्री के पकी हुई जामुन की शकल का काला रक्त निकलता ही रहता है। उसकी कमर में दर्द होता है तथा पेट में जलन होती है।
प्रश्रावं करोत्यूष्ण मेणेत त्पित्तस्य लक्षणं तस्योषधं प्रवक्ष्यामि येन गर्भ प्रधार्यते
॥१९॥ पित्त का लक्षण यह है चित्त में भांति और शरीर से गरम श्राव उत्पन्न करता है। उसकी ऐसी औषधि का वर्णन किया जायेगा जिससे गर्भ धारण किया जा सके।
उत्पलं तगरं कुष्टं राष्टी मधु स चंदनं एतानि सम भागानि अजाधीरेण पेषटोत्
॥२०॥ SRIDORRECTRICTARTE ३९२ PISTORSIOTECTERISTICISCES