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OSIRISOTSIDISTRISI015 विधानुशासन 7510050150151050HSS
कूपेष्यायतने नगरे पुरे ग्रामें आराम विहारे नदी कूले प्रेतोल्पदातेष तत्रा स्थानामंगानि भंजय भंजय कड कड वजेण शक्तिना गन्ह गृह दंडेन ताडय ताडय रखनेन छेदय छेदय पाशेन बंधय बंधय गदया चूर्णय चूर्णेय मंडल मध्ये प्रवेशय प्रवेशय यदिगंतोच क्षुधंईक्षुरसे प्रविष्टोवापुरांकाश मुंडक मुंडिके (मुंडकमल कर्णिकं) मूत्रपुरीषो (मूत्र - हरिद्रा जलंच पुरिषं गोमा भवेत) वा गृह गृह्न रूधि मांस भोजनेन भोजनं कुरू कुरू (लाक्षा रसोपि रूधिरः क्षया रसो गुड विमिश्रतो मांसः इतिजैनाम्राय) हुडहुड विदारय विदारय नत्य नृत्य कह कह वेतालं दुष्टम दुष्टं वागृहीत म गृहीतं वा ज्वररित मज्वरितं वा आनय आनय पूरा पूरटमारय मारय आरडतं आरडतं मूलंतंमुरुलंत त्रिविधिकारहंतवामपादमुमानहं गृहत्या भूत्वा लूता गर्दभ करि सप्प उटै वधय वधय पातालं बंधय बंधय दिशां बंधय बंधा अक्षि बंध बंध कुक्षि कुक्षि बंधबंध रूपं पच पच चालय चालय कक काडय काडय हहहहहह य व व व व व वाहिरवाहि आत्म मंत्रं रक्ष रक्ष परमं ऐदा छेदय ॐ रोगन ट्टी चेटक व व व वंस वंस वंस वंस वंस वंस शंहः शंहः कुरू कुरू फट् रूद्राज्ञातयति स्वाहा अमुना उच्छिष्ट मंत्रेण प्रजप्तेन स चेटक सिद्धिं दं वांछितौ स्वैरं मंत्री कर्म नियोजयेत् उच्चिष्ट मंत्र कैणा मुना प्रजतन चेटक सिद्धयत् वा पुस्त: मापुवोटाजयोत्साधक: स्वैरं तस्य प्रयोगकाले पंच नमस्कार मंत्र कृत रक्ष: दिग्बंधनं विदध्यात् ॥ मंत्रै ऐवान कुष्मांडा
इति चेटकमंत्र इस उच्छिष्ट मंत्र का जप करने से वह चेटक सिद्ध होकर इच्छित वस्तु को देता है और मंत्री की इच्छानुसार काम करता है। इस उशिष्ट मंत्र का जाप करने से वह चेटक सिद्ध हो जाता है तब साधक उसको अपने इच्छा किये हुवे कार्यों में लगा सकता है। इस मंत्र के प्रयोग के समय पंच नमस्कार मंत्र से रक्षा करके आस कुष्मांडी के ही मंत्र से दिशा बंधन करना चाहिये।
मत विधवा ब्राह्मण्याः पाद तलालक्तकेन सं लिरिवतं तद्वक्त पिहित वस्त्रे विधवा रूपं निराभरणं प्रणवं विच्चे मोहे स्वाहांत
सप्त लक्ष जाप्पेन एकाकिनी निशायां सिद्धयति सा यक्षिणी रंडा रंडा CSCI51250505115055 २२१P3ST58512151050512151