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विधानुशासन 9APPSSPP
सर्वातिशय संपूर्ण सर्व लोक पितामहं सर्व सिद्धि मयंदेवं सर्व सत्वाभय प्रद
जगत्पूज्यं जगद्वंद्यजगद्देवं जगदरं जगच्चूडामणिं जगन्नाथ जगत्कल्प मही रहूं
पुण्यानुवं पुण्यानां सारे रिव विनिर्मितं तुषार हार कर्पूर गौक्षीरेन्दु सुधोज्वलं
(९)
अर्थ:- सर्व अतिशय से पूर्ण सब लोक के पितामह सर्व सिद्धि रूप देव सब प्राणियों को अभय दान बाले जगत में पूज्य जगत से नमस्कार किये जाने योग्य जगत के देवता जगत के गुरु जगत के स्वामी जगत में सब से उत्तम जगत के कल्प वृक्ष ॥
(१०)
अनंतांनद निस्पदं सुधा सिंधु सुधा करं राग द्वेषोजितं ध्यायेत् श्री मपाश्र्व जिनेश्वरं
(११)
विश्व लयोपकाराय परमात्मानमिव स्वयं सर्वान् सुधाप्ते शिरव रादवतीर्ण महितले
(१२)
अर्थ:- पुण्य के कारण से बंधे हुए को स्वरूप धारी सार रूप बरफ कपूर गो दुग्ध चंद्रमा और अमृत के समान उज्वल
अर्थ:- तीनो लोक के उपकार के लिये स्वयं परमात्मा के समान सब को अमृत का पान कराने के लिये लेक के शिखर से पृथ्वी पर उतरे हुए
(१३)
अर्थ:- अनन्त आनन्दामृत के निश्चल समुद्र मे के चंद्रमा और राग द्वेष रहित श्रीमान पार्श्वनाथजी जिनेश्वर का ध्यान करे
द्वादशामि कुलंकं यत्किंचित दुर्लभं लोके यद्दूरं
चहुष्करं पार्श्वनाथ भवत्पादौ वरंयति स्वंय बरः
(१४)
अर्थ:- लोक में जो कुछ भी दुर्लभ दूर और दुष्कर है यह है भगवान आप के स्वयं वरण करने वाले चरण वही देते हैं।
OSPSPSPSP59595 २६१/SPSPSP5969595