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विधानुशासन 9595959595
पूर्णेदुं मंडलाकारं छत्र लय विराजितं मुक्ता कांति दलै द्विव्यै र्वाच्य मानं सुरासुरै
(३)
अर्थ:- चौबीस पत्रों युक्त कमल की कर्णिका के उपर समवशरण के बीच में सोने के सिंहासन पर विराजमान
अर्थ:- पूर्ण चंद्र मंडल के आकार वाले मोतियो की कांति के समान दिव्य कांति वाले तीन छत्रों छों से सुशोभित सुर और असुर से स्तुत किये जाते 烈 I
धरणारंग राजेन पद्मावत्या सनित्यशः
पार्श्वेच दक्षिणे वामे सद्भक्तया कृत सन्निधिः
(४)
अर्थ:- दाहिनी तथा बाई तरफ भक्ति से खड़े हुए नागेंद्राधिपति धरणेंद्र और पद्मावती देवी सहित
अमृत श्राविणोजंतु सर्व संमोहहारिणां
दिष्टवा सेविनां धर्म विश्व लक्ष्मी प्रदायिकं
अर्थ:- सब संसार के प्राणियों के मोह को नष्ट करने वाले अमृत को बरसाते करने वाले समस्त संसार की लक्ष्मी के देने वाले
भवार्णव पतज्जंतुयान पात्रमभंगुरं
व्याधि जन्म जरा मृत्यु वन वन्हि धनाधनं
हुए
मोहध्वांत समाक्रांत वस्तु वचार भास्कर
विश्व लोक चकोराक्षी संपूर्णेक निशा करं
(4)
धर्म को सेवन
(६)
अर्थ:- संसार रूपी समुद्र में गिरते हुए प्राणियों के लिये कभी न टूटने वाले जहाज स्वरूप जन्म जरा मृत्यु के रोगों रूपी वन के लिये महा भयंकर अग्रि स्वरूप
(७)
अर्थ:- मोह रूपी अंधकार से पकड़े हुए वस्तु तत्व के विचार के लिये सूर्य संपूर्ण लोक रूपी चकोर के नेवों के लिये पूर्ण चंद्रमा को
नमन्नराधीश मौलि मालार्चित क्रमं पुण्य पापविनिर्मुक्तमपि पुण्यैककारणं
(4)
अर्थः- नमस्कार करते हुए राजाओं इंद्रों के मुकुटों की माला से पूजित चरण वाले पुण्य और पाप से रहित पुण्य के एक ही कारण
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