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95959595951 विधानुशासन 95959595951
ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावति सहिताय आहे मट्टे क्षुद्रविट्टे मुद्रास्तंभय क्षुद्रान्स्तंभय स्वाहा ॥ तैरेवा मंत्राक्ष यंत्रोद्धारः
इन्हीं मंत्राक्षरों से यंत्र का उद्धार होता है।
पद्ममष्टदलोपेतं मायाकं जल संस्थितं पद्म मध्यांतरालेषु पत्रोपरियथा क्रम
॥१॥
एक अष्टदल कमल माया बीज ह्रीं और जलमंडल के अंदर बनाया जाये कमल के मध्य में बीज में और ऊपर क्रम से
तथैवाष्टौ तस्यावर सुमंडलं तथाष्ट शत जपेन ज्यरमेकांतरादिर्त
अष्टाय
॥ २ ॥
उपरोक्त मंत्र के आठ आठ और आठ अक्षर लिखने चाहिये इस मंत्र को १०८ बार जपकर एकांतरा
आदि ज्वर
चिपु दोर नेपाल शाकिली भूत संभवः आरण्यादिऽहिजां भीतिं हंति बद्धभुजादिषु
॥३॥
शत्रु राजा चोर शाकिनी भूत पिशाच और जंगल के सर्प आदि का भय इस यंत्र को भुजा आदि में बांदने से दूर हो जाता है ।
पुष्पमालां जपित्वा च मंत्रेणाट शतादिके प्रक्षिप पात्र कंठेषु भूतादीन् स्तंभवेद्भवं
॥૪॥
फूलों की माला पर इस मंत्र को एक सौ आठ बार जपकर यदि उस माला को प्राणी के कंठ में बांधने से भूत आदि का स्तंभन होता है।
गुग्गुल स्य गुटिन च शत महोत्तर हुर्त दुधनुच्चाटयेत्सवः शांति च कुरुते गृहे
॥ ५॥
गूगल की १०८ गोलियो को इस मंत्र से पढ़कर होम करने से यह मंत्र शीघ्र ही घर से दुष्टों का उच्चाटन करके शांति स्थापित करता है ।
देव
दानवस्य सिंहस्य कवचयो
वांछितैः सदा
श्री अश्वसेन कुल पंकज भास्करस्य पद्मावती धरण राजनिसेवितस्य श्री पाश्र्वनाथ जिन संस्तवना लभते भव्या श्रियं शुभ गतामपि वांछितानि
यह यंत्र देव दानव और सिंहों से बचने के लिये सदा ही कवच स्वरूप कहा गया है। इसप्रकार श्री अश्वसेन महाराज के कुल स्वरूपी कमल के लिये सूर्य धरणेन्द्र और पद्मवति से सेवित श्री
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