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SSOCISIOSCIRC5 विधानुशासन 151050510050SCIEN
जंबु वव धरो द्वीपः लाहोधिसमावृतः ईदाद्यष्टकैरष्ट काटाधिौरउलंकृतः
॥१०॥
तन्मध्ये संगतोमेरुः कूट लक्ष्यैरऽलंकतः उच्चरुच्चैस्तर स्तारस्तारामंडल मंडितः
॥११॥
तस्यो परि सकारांतं बीजमध्यास्य सर्वगं नमामि बिंबमाहत्य ललाटस्य निरंजनं
॥१२॥ जंबु वृक्ष को धारण करने याला द्वीप जंबू द्वीप है। उसके चारों तरफ से लवण समुद्र ने घेर रखा है। यह द्वीप आठ दिशाओं के स्वामी अर्हत आदि आठ पदों से शोभायमान है। अर्थात् अर्हत सिस आचार्य उपाध्याय सर्व साधु सम्यग्दर्शन सम्यक झान सम्यकचारित्र यह आठ दिशाओं के अधिष्ठाता हैं, तो आठों दिशाओं में स्थापित करें। इन आठों दिशाओं के मध्य में सुमेरू पर्वत है जो निन्यावे हजार योजन ऊँचा है ।एकहजार योजन भूमि में गड़ा हुआ है। चौडाई लम्बाई दस हजार योजम है। गोलमेल है जो सौ कूट शिखरों से शोभायमान एक लाख योजन ऊँचे सुवर्ण का है । ७९० योजन की ऊँचाई पर तारामंडल है।दस योजन पर सूर्य का विमान है। ८० योजन ऊपर चन्द्रमा है इससे ४ योजन ऊपर नमात्र मात्रों से ऊपर ४ योजन ऊपर बुध है इससे ३ योजन ऊपर शुक्र है शुक्र से ३ योजन ऊपर बृहस्तपति है जिससे ३ योजन ऊपर मंगल है इससे ३ योजन ऊपर शनिश्चर का विमान है शेष मात्र चित्राभूमि से ऊपर बुध और शनिश्चर के बीच में स्थित है इसे ज्योतिया कहते हैं। यह सब सुमेरू पर्वत के चारों तरफ परिक्रमा देने से बहुत रमणीक मालूम होते है। ऐसे सुमेरु पर्वत के ऊपर सकारांस बीज ही को विराजमान करके उसमें बैठे हुये धातिकर्म अंजन से रहित अहंत भगवान का अपने ललाट (मस्तक) में स्थापन करके नमस्कार पूर्वक च्यान करें।
अवयं निमलं शांतं बहलं जाइयतोज्झितं निरीहं निरहंकारं सारंसारतरं धनं
॥१३॥
अनुद्धतं शुभं स्फीतं सात्विक राजसं मतं तामसं विरस बुद्धं तैजसं शर्वरी समं
॥१४॥
साकारं च निराकारं सरसं विरसं परं परापरं परातीतं परं पर परात्परं
॥१५॥ CISCTRICISCISCTRICISIOTS ३५६ PISesicrscCISCIEDOIN