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959595955 विधानुशासन 959596959595
कर्णिका है। उसमें लक्ष्मी देवी का मंदिर है ।
यह चारों देवियां एक पल्य की आयुवाली है तथा पारिषद जाति के १६०० देव हर एक की सेवा करते हैं।
गौरी - चंडी सरस्वती जय अंबिके विजया क्लिन्ना- अजिता नित्या- मदद्रवा - कामांगाकामबाण - सानन्दा- नन्दमालिनी माया मायाबिनी- रौद्री कला काली- कलिप्रिया यह चौबीस जिनशासन की रक्षा करने वाला महादेवियाँ तीनों लोक पाताल- मध्यलोक- आकाश अथवा स्वर्ग लोक गामिनी है। यह सब महादेवी मुझ को कांति लक्ष्मी धैर्य और बुद्धि देवें ! नील पर्वत पर ४००० योजन का केशरिन नाम का कीर्ति देवी का मंदिर है। रूक्मिन पर्वत पर २००० योजन का महापुंडरिक नाम का हृद है दो योजन का कमल है दो कोश की कर्णिका है महापुंडरीक हृद में बुद्धि देवी का मंदिर है। यह सब मंदिरों के भवन सफेद रंग के बने हुए है।
दुर्जनाभूत वेतालाः पिशाचा मुद्गला स्तथा ते सर्वे उपशाम्यतुं देव देव प्रभावत्ः
॥ ६६ ॥
दुष्टजन भूत वैताल पिशाच मुद्रल दैत्य यह सब मिथ्यात्वी रौद्र परिणामी जीव देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान के प्रभाव से शांत होवें ।
दिव्यो गौप्यः सुदुष्प्राप्य श्री ऋषिमंडल स्तयः भाषित स्तीर्थनाथेन जगतत्राण कृतोऽनयः
॥ ६७ ॥
यह ऋषि मंडल स्तोत्र बहुत दैदीप्यमान हर एक को दिखलाने योग्य नहीं है। गुप्त रखने योग्य है यह आसानी से मिलने वाला नहीं होने से दुष्प्राप्य है। श्री ऋषि मंडल स्तोत्र को तीन लोक के स्वामी महावीर भगवान ने जगत की रक्षा करने के वास्ते निर्दोष होने के कारण कहा है।
रणे राजकुले वन्हों जले दुर्गे गजे हरौ शमशानै विपिने घोरे स्मृतो रक्षति मानवं
युद्ध संग्राम में राजदरबार, अग्नि ज्वाला में, पानी में, गढ़किले में, हाथी भय में, श्मशान भूमि के भय में, निर्जन उजाड़ यन में, भयंकर विपत्ति में यह स्तोत्र करने पर मनुष्य की रक्षा करता है।
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में सिंह के भय
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मंत्र का स्मरण
राज्य भृष्टा निजं राज्यं पदभृष्टा निजं पदं लक्ष्मी भृष्टा निजां लक्ष्मीं प्राप्नुवंति न संशयः 95969595969596 ३८59596959595
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॥ ६९ ॥