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CREDICTSIRIDDHI विधानुशासन STISIONSCISIONSCISS
॥ ऋषि मंडल स्तोत्र || ॐनमः
आयंताऽसर सं लक्ष्यमक्षरं व्याप्य यस्थितं अग्नि ज्वाला समं नादं विंदु रेवा समन्वितं
॥१॥
अग्निज्वाला समाक्रांतं मनोमल विशोधनं दीदीप्यमानं हृत्पी तत्पदं नैमि निर्मलं
॥२॥ स्वर व्यंजनों के आदि के अक्षर अ और अंत का अदार ह और अंत के अक्षर ह को अग्निज्याला (र) और इसके मस्तक पर बिन्दु और अर्धचन्द्र रेखा सहित करना अर्थात् अह ऐसा बनाना यह अर्ह बीज अग्नि की ज्वाला के समान प्रकाश वाला है। मन के मेल पाप को धोने वाला निर्मल है और अर्हत पद का कहने वाला, प्रकाश मान अर्ह पद को हृदय के कमल अष्टदल वाले में स्थापित करके उसको मन वचन काय से नमस्कार करता हूँ।
ॐ नमोः ऽहंदभ्यः इशेभ्य: ॐ सिद्धेभ्यो नमो नमः ॐ नमः सर्व सूरिभ्य: उपाध्यायेभ्य ॐ नमः ॥३॥ ॐ नमः सर्व साधुभ्यः तत्व दृष्टिभ्या ॐ नमः (ॐ नमस्तत्व दृष्टिभ्यश्चारित्रेभ्यो नमो स्तुवै)
ॐ नमः शुद्धे बोधेभ्य श्चारित्रेम्यो नमो नमः ॥४॥ अहंत भगवान को जो ईश अर्थात तीन लोक के स्वामी है। अठारह दोष रहित हैं। चौत्तीस अतिशय आठ प्रातिहार्य, अनन्त चतुष्टय और छयालीस गुण सहित हैं। उनको नमस्कार हो।सूरि अर्थात आचार्य छत्तीस गुण सहित , सर्वऋद्धि के धारक, तद्भय मुक्तिगामी हैं। उनको नमस्कार हो। उपाध्याय भगवान जो संपूर्ण द्वादशांग के ज्ञाता पच्चीस गुण सहित तदभव मोदा गामी है। उनको मेरा नमस्कार हो। सर्व साधु भगवान जो अट्ठाइस मूल गुण धारक तद्भव मोक्षगामी हैं तथा आठ अंग सहित सवोत्कृष्टज्ञान के धारक सर्वसाधु भगवान को नमस्कार हो।सम्यकज्ञान तथा तत्वदृष्टि अर्थात सम्यक दर्शन को नमस्कार हो । तेरह प्रकार के चारित्र धारी हैं उनको नमस्कार हो ।
श्रेयासेऽस्तु श्रिये स्त्वेतऽहं दाद्यष्टकं शुभं स्थाने ष्वष्टस संन्यस्तं पृथग बीज समन्वितं
॥५॥ श्रेय से अर्थात कल्याण के कर्ता है, श्रेय लक्ष्मी के कर्ता है अहंत भगवान से आरंभ करके अर्थात अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु, सम्यकदर्शन, सम्यकझान, सम्यकचारित्र आठों पद एवं कल्याण स्वरूप ॐ बीजाक्षर सहित अलग अलग आठ दिशाओं में स्थापन किये गये सुख देवे और लक्ष्मी को देवें।
ಇದEEPಥg ೩೬೪ ದಟಣಗಳ