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विधानुशासन 550
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा
तयाच्छादित सवांगं मां मा हिंसतु लाकिनी
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से के सब अंगों को लाकिनी जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु हाकिनी
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देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु शाकिनी
॥ ३६ ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को शाकिनी जाति के अन्य पीड़ा महीं दें मुझे न सतावे ।
॥ ३५ ॥
के हुए मेरे शरीर
॥ ३७ ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को हाकिनी जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु राक्षसाः
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देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को राक्षस जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य वा विभा
तयाच्छादित सर्वांगं मां मा
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिसंतु भैरवा
॥ ३९ ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को भैरव जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे म सतावे ।
हिसंतु भेषसा
॥ ४० ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को भेषसा जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
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३६१ PA691510
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