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PSYSPSPSPSS विधानुशासन SP596959595
श्री पार्श्वनाथाय नमः श्री भद् विद्यानंदी स्वामी विरचित ॥ श्री कलिकुण्ड कल्प ॥
कलिकुण्ड नमस्कृत्य पार्श्वनाथाभिवाचकं । कलिकुण्ड प्रभेदानं वक्ष्ये साराधन क्रमं अर्थ:-श्री पार्श्वनाथ स्वामी के चावक कलिकुण्ड को नमस्कार करके कलिकुण्ड के भेदों को आराधना विधि सहित कहूँगा ।
॥ १ ॥
हूं कारं ब्रह्म रूद्धं स्वर परिकलितं वज्र रेखाष्टभिन्नं । वज्र स्याग्रांतराले प्रणवमनुप मानानाहतं सश्रणिंच तद्विदंते
वातयान संपिडान ह भ म र झ स खान वेष्टये वज्राणां यंत्र मेतत्परकृत पर विद्या विनाशे प्रयुक्तं ॥
अर्थः- ब्रह्म (ॐ) से घिरे हुए हुंकार को स्वरों से घेर कर उसके चारों तरफ आठ वज्र रेखाओं से बँधा हुआ हो और प्रत्येक अतंराल में अनुपम (ॐ) चीज अनाहत् ( उ ह्रीं) तथा ह भ म र घ झ सख पिंडो से युक्त हो इस बच्चों के यंत्र का प्रयोग दूसरों की विद्या को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
ॐ ह्रीं श्रीं जैन बीजं तदुपरि कलिकुण्डेति दंडाधिपायं स्फां स्फी स्क्रू स्क्रौंः
स्क्रः ॥
इति चतुरतोपात्मविद्यां च रक्ष रक्षेत्यन्यस्व विद्यां स्फूरतिमनुपमं छिंद भिंद द्वयांते हुं फट स्वाहेति मंत्र जपतु द्रद्रः मना अन्य विद्या विनाशे
अर्थः- ॐ ह्रीं श्रीं जैन बीज (हैं) लिखकर उसके ऊपर कलिकुंड स्वाभित्रतुल चल वीर्य पराक्रम दण्डाधिपति फ्रां क्रीं स्फूं स्फ्रें स्फः आत्म विद्यां रक्ष रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद हुं फट्
॥ २ ॥
स्वाहा ।
अर्थ:- इस मंत्र को दूसरे की विद्या के नाश के लिए दृढ़ मना होकर जपना चाहिये । ॐ ह्रीं श्रीं हैं कलिकुंडदंड स्वाभिन्नतुल बल वीर्य पराक्रम स्फ़ां स्फ्रीं स्फः स्फ्रें स् देवदत्तस्य सर्वकार्य सिद्धिं कुरु कुरु आत्म विद्यां रक्ष रक्ष परविद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद हुं फटस्वाह ॥ 959595959599 PSP596959595951