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CASIRSIDASTISTOST05 विधानुशासम ISIONSIDISTRISTOTSIDESI
ॐ ह्रीं इवीं श्रीं अहं ॐणमो सयं बुद्धाणं हां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र:अप्रतिचक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं झौं स्वाहा ॥११॥ कवित्वं पांडित्यं भवति यह मंत्र कविता करने शक्ति और विद्वता प्राप्त कराता है।
ॐ ह्रीं इवीं श्रीं अह ॐ णमो चोहिट बुद्धाणं हां ही हूं हो : अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौ झौ स्वाहा ॥१२॥
अन्य गृहीत श्रुतं एक संधौ भवेदिति इस मंत्र से दूसरे के ग्रहण किये हुये शास्त्रों को सुनकर उसी के समान याद हो जाता है।
ॐ हीं श्वी श्री अहं ॐणमो उज्जु मदीणं हांहीं हौ हः अप्रति चक्रे फट विचकाटा स्वाहा ॥१३॥
सर्वशांतिकं भवति इस मंत्र से सर्वप्रकार की शांति होती है।
ॐ ह्रींची श्री अह ॐणमो विउमदीणं हां ह्रीं हुं ही हः अप्रति चके फट विचक्राय असि आउसा झौ झौ स्वाहा ।।१४ ॥ बहुश्तवान भयति लवणमल भोजने वर्जनं इस मंत्र से बड़ा भारी पंडित हो जाता है। इस मंत्र के प्रयोग काल में नमकीन व खट्टे नहीं खाना चाहिये।
ॐ ह्रीं इवीं श्रीं अह ॐणमो दशपुटवीणं हा हीं हूं हौं हः अप्रति चक्रे फट विचक्राय अमि आउसा झौ झौ स्वाहा ।।१५॥
सांग वेदी भवति इस मंत्र से दस अंग धारी पंडित हो जाता है।
ॐ हीं वीं श्रीं अर्ह ॐ णमो चउदश पुदीणं हां ही हूं ही हः अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौ झौं स्वाहा ॥१६॥
स्व समय पर समय वेदी भवति १०में दिन इस मंत्र से अपने और दूसरे के अंत समय का ज्ञानी हो जाता है। CHRISTRISTOTRICTERISEA5 ३२५ PISTRISTRITIRI525105ORI