________________
CASTEROIDPISOISOR विद्यानुशासन IECTRORISCIROIN
अयणं पूजा काउंसेयं पसाणाण व सिरती अठ सयं पुण जावई समायरस मतंज तिपय सिरे रवि इज्जा कलसं जल मिस्सगंधस पढणं। उठरिष्ट विजेहकं सं पूजहू णसंति पर कनं ॥१७॥
दक्षिण दिसिठा विज्जई मुसलं संजुत्ततंदुलो उविरि कंस सिरेण रियवियं दीव पुजंतु भाराणि पीडे
॥६८॥
अत्तर सय दिवं फलाहं पुज्ज ति मुसलअंत दिसि
मंति पलाइ वलाह पदो वंजविाई संमान मुसल दले ॥६९ ॥ ॐ दीये शिरया उवार आवेशय आवेशय सत्यं कथय कथय स्याहा। अस्य यंत्रस्योपरि पुष्प निक्षेपण मंत्र।। ॐहीं सुंदर सुंदरि परम सुंदरिपरम सुंदी अवतर अवतर आगळ्छ आगछ अवतर अवतरतिष्ठ तिष्ठ धनु धनु कंपकंप आयेशय वेग वेग शिव शिव अवतर अवतर प्रज्वल प्रज्यल दह दह रवं गं जं गं। ज्यालामालिनी देवी ॐ ह्रीं - ब्लू अवतर अवतर पंच पंच क्षोभय बोभा ये गेहूं
फट् स्वाहा। अर्थ:- विद्या यह परविद्या छेदन करने वाली है। यह दो मूल कलिकुंड मूलयुक्त कहिये मूल विद्या संयुक्त विहण अर्थात् प्रभात ही या पहिले होई से अष्ट द्रव्य से पूजन करे। अर्चन पूजन सेवा अष्ट प्रकार की पूजा से शत्रु मित्र बनता है। प्रयम ही प्रभात काल कलशाभिषेक सुगंध दूध, घृत, इशु, रस आदि सुगंध द्रव्य से मंत्र पढ़े कलशाभिषेक करना तथा पूजा करे तो पहले का यदि दोष रूप हो तो नष्ट होता है। दाहिनी दिशा बैठ चोखा सालि से त्काल निकाले चायल से पूजन करे और दीपक से पूजन करे ।। अष्टोत्तर दीपक और इतना ही फल से पूजन करे तो अंतर दिशि गमन की व्यथा मष्ट होती है। दीप कमंत्र पढ़े यंत्र पर पुष्प क्षेपन करे। संदरि मंत्र की विद्या विद्वेष कर्ता है और पर विद्या चले नहीं ,और यह यंत्र जब लिखे तो अपने आप ही विद्या नष्ट हो जाती है।
विजा विद्देस करं पर विज्जाया ईस ताप परसेणं लिकेइजत दयाणं रूद्धं सुधरेणसु सिप्याई॥ वापा रूयं लियावं हत्थ तलं मारणं स विरोण इत्थं गेयर भंजय पच्छतले होई आईट्ठी