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SADRISTORISTRICT
विद्यानुशासन PARISTRISTOTRICISTRIES
गणधर वलय विधानं
नमस्कृत्य गणाधीशं गौतम मुनि पुंगवं वक्ष्य हं गण भयंत्रं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं
॥१॥ गणों के स्वामी मुनियों में उत्तम गौतम गणधर को नमस्कार करके भोग और मोक्ष के देने वाले गणामृत यंत्र का वर्णन करूँगा।
सव्टो तरा प्रादि विचादि युक्त षट्कोण मध्य स्थितं हे है स्मरंतः
आवेष्टितं सौंगणं भगिरते : झौं झौं पर स्यांत गहावसानैः टीका
सव्यमयं दक्षिणामि तरम सन्धम प्रदक्षि- मित्या आविस्या सौ प्रादिः अप्रतिर्य चक्रे फडित्यर्थःविच आदि यस्यासौ विचादिःविचक्राय स्वाहेत्यर्थःसव्ये तरा प्रादि विचादि युक्तं च तत षटकोणं तस्य मध्ये स्थित मिति सव्य तरा प्रादि विचारदि युक्त षट्कोण मध्य स्थितं च तत हं च तत स्मरंतु चिंतातु कथं भूतं आवेष्टित कै सों गण भूद्धिः सह ॐ वर्तते यै स्ते सोमः ते च ते गण भतश्च ते सौं गणभृतः तै कथं भूतै झौं झौं पर स्वांत गहावसानैः अप्रति चक्रे फट् इस सव्य मंत्र और विचक्राय स्वाहा। इस अपसव्य मंत्र से युक्त छ कोण के यंत्र के बीच में अर्ह (ह) को लिये इसके आदि में ॐ सहित तथा अंत में झौं झौं स्वाहा सहित मंत्र से येष्टित करे। इदानीं ध्यानमुच्यते
षट्कोण चक्र विरचय चन्मध्ये हंकारं विन्यस्ता षट्कोण भ्यंतरे सव्येन अप्रति चके फडित्यकैकाक्षरं विन्टनस्ट षट्कोण बाह्ये अपसव्योत विचक्राय स्वाहेति इत्ये कैकं विन्यस्यत द्वाह चंद्र मंडलं स्फुर चंद्रामं विन्यस्य तद्वाह्ये मालामंत्र विन्यस्य ततो बाह्ये चंद्र मंडलं विन्यस्ट भुपुरं च कथं भूतं महायंत्रं हद्धिचिंतयेत् ॥ एक छह कोण चक्र बनाकर उसके बीच में हंकार को रखकर छहों कोणों के बीच में सव्येन अप्रति चक्रे फट के एक एक अदार को रखकर, उसके बाहर प्रकाशित चंद्रमा के समान चंद्रमंडल बनाकर, उसके बाहर माला मंत्र रखकर, उसके बाहर चन्द्रमंडल रखकर पृथ्वी मंडल बनाये । इसप्रकार के महायंत्र का हृदय में ध्यान करें। STERISTRISTRISEX5235075 २९४DI5DIST05510151005215DIS