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95959595DDP विधानुशासन 959595965
श्री खंडागुरूकुंकुम कर्पूर वेणुज गोरोचन सित सर्षय दुवांकुर वगैलादिभि सुसवर्ण लेखन्या दर्भादिनावा
एत यंत्र स्फुटाक्षरं फलके ताम्र पत्रे भूर्जपटेया विलिख्य गंधाक्षत पुष्प दीप रातोमारि चोराद्युपसर्ग न इस यंत्र को श्री खंड (चंदन) अगर कुंकम (केशर) बंस लोचन गोरोचन सफेद सरसों टूब के अंकुर लोंग इलायची आदि से सोने या डाभ आदि की कलम से स्पष्ट अक्षरों में तख्ती ताम्र पत्र या भोजपत्र पर लिखकर, गंध अक्षत पुष्प दीप धूप आदि से पूजा करने वाले को शत्रु महामारी चोर आदि के उपसर्ग नहीं होते ।
धूपादि भवंति ॥
इदमेव चक्रं ते रेव द्रव्यै स्तथा भूत लेखिन्या हंकारस्य मध्ये साध्यनाम स्वनाम मध्ये यस्यादा स्ताद्विलिरव्य विधिना सप्त रात्रमभ्यर्चितं राजादि वश्यं करोति
इस ही चक्र को उन ही द्रव्यों से वैसी ही कलम से हंकार के बीच में साध्य के नाम को अपने नाम के बीच में नीचे लिखकर विधिपूर्वक सात रात्रि तक पूजन किया जावे तो राज वशीकरण आदि करता है।
अथतेनैव विधिनात दिदं यंत्रं विलिख्य हंकार मध्ये ज्वरित नाम लिखित्वा त्रिरात्रं सप्तं रात्रं वा विधिनाऽभ्यर्चितं ज्वरमपहरति । ऐवा सर्व्व व्याधीष्वन्येषुप सग्र्गेशु च यंत्र मिदं यथाविधि योजनीयं इसी ही विधि से इस यंत्र को लिखकर हंकार के बीच में ज्वर से पीड़ित साध्य नाम को रखकर
तीन रात या सात रात तक विधिपूर्वक पूजन करने को सब रोगों और उपसर्गो में लगाना चाहिये ।
ज्वर को दूर करता है। इसीप्रकार इस यंत्र
अथेदं यंत्र पीत वर्णयस्य हृदयाऽभ्यंतरे पूर्व विचिंत्यं पश्चात् तस्य शरीर व्यापी चित्यंत्तस्मिन कोधादि स्तंभनं भवति यथाऽस्मिन् धूम्र वर्णत्तया चिंतिते उच्चाटनं भवति नीलवर्ण तया मोहनं भवति कृष्ण वर्ण तया द्वयोरप्या शक्त चिंतयो हंदि शरीर व्यापि त्वेन चिंतित्ते परस्पर विद्वेषणं भवति वर्ण तया निर्विषकरणं धवल स्यात्
95959595959595 २९५ P/58589/595959619