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ORDISCIRCISIOTSIC विघानुशासन 98501505DISCISCESS
ॐहीं अह णमो स्वारस थोण वीरस्य प्रायो श्रवणं स्वादो यासोस्तिते क्षीर श्रवणः क्षीरस्यापिनोवा तेषक दशन मापहि पाणौ पतितं तपो माहात्म्यात क्षीरं श्रवति स्वदत्ते या ए व मुत्तर
प्रयोपि मधुर शब्देन तु मधुरो रसो गाते जिन मुनि के हाथ में रस सहित भोजन रखने से यह भोजन खीर समान मधुर हो व खीर श्रवे ये खीर प्रावि अद्धि धारक है उनको नमस्कार हो।
ॐहीं अहं ॐ णमो सप्पि सवीणं ४२ । सर्पिषो पतस्य प्रायः श्रवणं स्वादो या रोषां ते सर्पिश्राविणः सर्पि स्यादिनों
याकदशन मपिहि पाणौ पतितं तपो माहात्यात सर्पिः श्रयति स्वदो या।। जिनके हाथ से लूखा भोजन से घृत झरने लगे अथवा मुनि के वचन घृत की तरह तृप्ति करे सो घृत प्राविणीं ऋद्धि है।
ॐहीं अहं ॐणमो मुहरस वीणं ४३ मधो मधुर सस्य श्रावक श्रवणं स्वादो या येषांते मधुर श्राविणः मधुर स्वादिनोंयाक दशन:मपि हि पाणी पतितं तपो माहात्म्यात् मधुर श्रयति
स्वदत्त वा जिन मुनि के हाथ में रखा हुआ रस रहित भोजन मिष्टान्न हो जाये अथवा जिनके वचन श्रोतागे को मिष्ट गुण को प्राप्त हो सो मधुर श्राविणी धारी मुनियों को नमस्कार हो।
ॐहीं अहणमो अमिय सवीणं ४४ अमृतस्य श्रायः श्रवणं या स्यादो वाटयेषां ते अमृत स्वादिनो वाक दशनमपि
हि पाणौ पतितं तपोमाहात्म्यात् अमृतं श्रवति स्वदतेवा। जिन मुनिराज के हाथ में चाहे जैसा रस रहित आहार आय सो आहार अमृत सामान हो हो जाय या जिनके वचन सुनने से अमृत सामान मालूम हो उनको नमस्कार हो।
ॐहीं अह ॐणमो अक्षीण महा णसाणं ४५ अक्षीणं महानसं रसबती येषां ते यतो भाजना दुद्धतस्य भोजनं तेभ्यो दसतं चळं वर्ति स्कंधा वारेपि भोजिते प्रद्धि विशेष यशातन् सीटते आ
अस्तमयात जिसके घर मुनि भोजन किन्ये सो भोजन उसी दिन कम नहीं होय । चक्रवर्ती की सेना भोजन करे तो भी यदे नहीं या अक्षीण महाणस ऋद्धि है। इस ऋद्धि से कल्पवृक्ष की तरह वांछित फल मिले।
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