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SSIOISTRIS01501505 विधानुशासन 98510050005TOYSIOT50050
इय मतं वलीयज जवहज्जु शेययति सच्छेण पुच्च से वईमत व सूजीणी सितमुया रवई रंगा रसु मोअट्ठ सहस्साणि सिद्धये मंतं। पच्छाईत्तिय कम्मं करणादं सौरव्यं माणि मंतेण जं जे इच्छई अंगे तं तं मव्वाणि छ यो सिग्ध सु गांव मणिदाणं पुव्य काउण जिणसमये।
परविद्या निवारणं अर्थः- यह मारण विद्या कुटिल कर्म कोडिकर्म मयाण मयं काम देवसमान पुरूष रूप इचवाइसो सौरयारूप हेय। सिर उर्द्ध लिखे यंत्रनाम रुद्ध रूपार नाम लिख रौधे माया बीज से वेष्टित करे। फिर मंत्र से वेष्टित करें, खेट का अंगारा करि यह यंत्र ९००० लिखे तब मंत्र सिद्ध होयपीछे जो कर्म कहती है कि कारण दाता से खमाणि मंत्रण सर्व कार्यकर्ता स्वरूप होय । प्रर्यतै जो जो इच्छा होय सो सर्व सिद्धि देवे सुग्रीव मुनीद्र आदि जो समय समय सिद्धि के दाता हुये हैं।
अर्ण विईय विहणं भूय सुर कवेण रवतं कर्ज ईपर विलिकंबइ जंतअट्ठसंप तस्स पुज्जाई आयास आईय रूद्धं देवश्या विहणं तं सख्या नइ कुडिला सा विद्या णासई स्निग्धजिणं दि? इय पुज्जाउाई धम्मणि मित्तय सिद्ध रायहिम सं यहई धम्म जणाण पच्छाकज वियाणेई।
परविद्या छेदन अर्थ:- यह विद्या परविद्या छेदन है और सुख की कर्ता है या सुख रूप ही कहीं इस यंत्र को लिख अष्ट द्रव्य से पूजन करे है। जिस जिस यंत्र को उसके यंत्र से निरूद्ध करे येष्टित करे। सर्व कुटित विद्या तत्काल नष्ट करे। यह जिनेश्वर देव ने कहा है। इसको पूजा का इस निमित्व कार्य सो सब धर्म निमित्त सिद्ध कहा है। जिससे सुख बधे और भगवान व्यधित धर्म बधं पीधा कार्य विचार तो सिद्ध होय।
विज्जा विज्जेस करं पर विज्जा माइं यणपसेणं अकरवं मूल जुत्तं कलिकुंड विहामं सिट गंधे
॥६५॥
S5052550551035105505 २९१P5251915101501501505