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पद्मावती पाणी पयोजपूजां प व्योजप्रजांधि पयोज युग्मं । त्वां तोष्ट मीष्टे कलिकुंड दंड स्वामिन्क्यं मादृग लब्ध वोद्याः ॥
अर्थः- पद्मावती के हाथ से कमल लेकर पार्श्वनाथजी के चरण कमल की पूजन से मनोवांछित पाता है ज्ञान की भी प्राप्ति करता है ।
तथापि मम चेतसि स्चुरित पत्र जंधिः प्रभोः पदांबुज यगी ततोमल मतिः ॥
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अर्थ:- पद्मनंदिजी काचित्त स्फुरायमान होता है प्रभु के चरण युगल की निर्मल बुद्धि से स्तुति से आपका स्तोत्र उत्पन्न होता है। प्रभु के चरण युगल की निर्मल बुद्धि से स्तुति से आपका स्तोत्र उत्पन्न हुआ है। जिससे लक्ष्मी की वृद्धि होय इससे सत्पुरूषों को निर्मल शुद्ध संपदा होती है।
समुन्मीलति तव स्तव समुद्भवो वर्द्धमान श्रिये ततो यम निसं सतां विमल मूल
॥ अथ जयमाला प्रारम्भयते ॥
प्रोद्यत्सन्मणि नाग नायक फटा टोयोल्ल सन्मंडपं सद्भक्त्या नमदि मौलि मणिभिर्भास्वत्पदाभोरुहं प्रोन्मलिनक्तपा नील दालि पटली संकाश मुत्पादकं ध्याये श्री कलिकुंड दंड विलस चंडोग पार्श्व प्रभुः
भवतु । संघेनये ।
॥ १ ॥
सुविद्ध विशुद्ध विवाहैद निधान विकाशित विश्व विवेक विद्यान ॥ पिंडवित काम जगज्जय चंडसदा सदयोदय जय कलिकुंड ॥ २ ॥
पयोधि पयोधर धीर निनाद निराकृत दुर्मत दुर्मद वाद असत्य पथैक पतत्पविदंड सदा सदयोदय जय कलिकुंड ॥ ३ ॥
निराकुल निर्मल शलि निरीहनिगस निरंजन जिन नरसिंह विपाटित दुष्ट मद द्विपगंडसदा सदयोदय जय कलिकुंड ॥४॥
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