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Pae6959 विद्यानुशासन P559
प्रिय रक्त भूषणेन स्वध्याये जंभलेन देवेन सं प्राप्सैकी भावं तदीय मंत्र प्रयोग वियों
हथनाया
॥ ६ ॥
प्रिय तथा लाल वस्त्रों से युक्त जंभल देव का ध्यान करके मंत्र रूपी समुद्र में अनन्य रूप से निमग्न हो जावे ।
अयुतानां त्रयमेत जंभल मंत्र जपेत्प्रसन्नमनाः जुहुयाच्चात्र तदर्द्ध विल्वस्य दलैः समिद्भिर्वा
॥ ७ ॥
इस जंभल मंत्र को प्रसन्न मन से तीस हजार जपे और उसका आधा १५ हजार बेल के पत्तों की समिधाओं से होम करें।
अमुना सादन विधिना सिद्धे स्मिन् जंभलस्य मंत्रेस्मिन तन्मूर्द्धनितेना झिः सी काभि स्तर्पणं दधात्
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इस जंभल मंत्र का इस विधि से सिद्ध हो जाने पर फिर उसके मस्तक पर जल से तर्पण करें।
इत्यं समंत्रममुना सप्र्पण विधिना कृतेन परितुष्टः विश्राणयेत्स देवो महद्धनं मंत्रिणं तस्मै
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इसप्रकार मंत्र सहित तर्पण विधि के हो चुकने पर वह देव संतुष्ट होकर उस मंत्री को बड़ा भारी धन देता है।
दूसरी विधि
षट्कोण मंडले तंदेवं संस्थाप्य माणिभद्राद्यैः । परिवृतमभ्यच्यांऽयुतममुंजपेन्मंत्रम स्याग्रे
॥ १० ॥
फिर उस देव को छह कोण वाले मंडल के अन्दर स्थापित करे मणिभद्र इत्यादि मंत्र से वेष्टित करके पूजन कर उसके आगे इस मंत्र का दसहजार बार जपे ।
बिल्वस्य समिद्भिर्वा पत्रैर्वा तत्र होम मपि कुर्यात् पर्ण पंचकं प्रतिदिनं दद्याद्दैव स्तत स्तस्मै
॥ ११ ॥
फिर बेल की समिधा से या पत्तों से होम करें और देव पर प्रतिदिन पांच पत्ते चढ़ाता रहे तथा “ ॐ जंभले जंभलेद्राय जंभलाय" इस मंत्र का जप करता रहे यह मंत्र साधारण साधन आदि में पहले के ही समान है।
ॐ जंभले जंभलेंद्राय जंभलाय पठेत्यऽसौ मंत्र स्तदीय पूर्वेण सद्दश: साधनादिषु
95969596969 २१९P/59595959595
र
॥ १२ ॥