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PSPSP595950 विधानुशासन 9595959556
दत्त्वा दर्भास्तराणं दुग्धाहारं पुरा कुमारिकयोः स्नायाध ततः प्रातर्ध्वलांबर भूषणादीनि
।। २ ॥
रात्रि के पहले पहर में उन दोनों कुमारियों को दर्भ की शय्या और दुग्ध का आहार देकर प्रातः काल उनको स्नान कराकर सफेद वस्त्र आभूषण आदि दें।
कलशादर्श कुमारी स्थानेष्वथ विन्यसेत्
अमू मंत्र विनयं गज वश करणं क्षां क्षीं क्षूंकार होमांतं ॥ ३॥
प्रणवादि पंच शून्यैरभि मंत्र्य कुमारिका कुचस्थानं असितं तयोश्च दधात्त घृतेन सं मिश्रितान पूपान्
॥ ४ ॥
फिर ॐ क्रों क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः स्वाहा इस मंत्र से कलश दर्पण को कुमारियों के स्थानों में रखे उन कुमारियों के कुछ स्थान में ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः इस मंत्र से अभिमंत्रित करके उन्हें भोजन के लिये घी के पूर्व दें।
आलक्तकाभि रंजित हस्तांगुष्टे निरीक्षयेत् रूपं कर निर्धार्तित तैलेना गुंष्टं स्नान कारणेन
हाथ से तिलका तेल लगाये हुवे अर्थात् तेल से स्नान कराये हुए अलक्तक से रंगे अपने अंगूठे में अपने अपने रूप को दिखायें।
हुए
प्रणवं पिंगल युगलं पणत्ति द्वितयकं महाविधेयं । टांत द्वयं च होमं दर्पण मंत्रो जिनोद्दिष्ट : ॐ पिंगल पिंगल पणात्ति पणात्ति महाविधे ठः ठः स्वाहा जिन भगवान ने इस मंत्र को दर्पण मंत्र कहा है।
जापं भानु सहस्रैः सति कुसुमैरिंदु किरण संकाशैः सिद्धयति दशांस होमोनादर्श निमित्त मंत्रोयं
॥५॥
चित्त भस्मानेक विशंति बारानभिमंत्र्य दर्पणं पूर्व । शाल्य क्षतोपरिस्थितः नवाम्बु परिपूर्ण नव कुंभे
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मंत्री अपने
॥ ७॥
यह मंत्र १२ हजार बार चंद्रमा की किरण के समान श्वेत पुष्पों से जप करने तथा दशांश होम
से आदर्श ( दर्पण) निमित्तज्ञान के लिये सिद्ध होता है।
॥ ६॥
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