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PPSP59S
ॐ ह्रीं श्रीं है नेमिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं हे पार्श्वनाथाय नमः
वह इस प्रकार है । ॐ ह्रीं चक्रेश्वर्ये स्वाहा ॐ ह्रीं दुरितायै स्वाहा
स्वाहा
ॐ ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा ॐ ह्रीं शांतायै ॐ ह्रीं सुतारकायै स्वाहा ॐ ह्रीं मानव्यै स्वाहा
विधानुशासन
ॐ ह्रीं विदितायै स्वाहा
ॐ ह्रीं कंदर्शायै स्वाहा
ॐ ह्रीं बलायै स्वाहा ॐ ह्रीं वैरोटै ॐ ह्रीं गांधायें स्वाहा
स्वाहा
ॐ ह्रीं पक्षायत्यै स्वाहा
25/5258/59595
प्रणव त्रिमूर्ति पूर्वा होमांताश्वदलागतः चक्रेश्वीरी प्रभृतयों लिखेत् शासन देवताः
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अर्थः- उससे आगे के चौबीस दलों में प्रणव (ॐ) त्रिमूर्ति (ह्रीं ) को पहिले लगाकर तथा अंत में होम (स्वाहा ) लगाकर चक्रेश्वरी आदि शासन देवियो को लिखे ।
॥ तद्यथा ॥
ॐ ह्रीं श्रीं हे नेमीनाथाय नमः
ॐ ह्रीं श्रीं है महावीर वर्द्धमान स्वामिनेनमः
ॐ ह्रीं अजितायै स्वाहा
ॐ ह्रीं काल्यै स्वाहा
ॐ ह्रीं श्यामायै स्वाहा ॐ ह्रीं ज्वालामालिन्यै स्वाहा
ॐ ह्रीं अशोकायै स्वाहा ॐ ह्रीं चंडायै स्वाहा
ॐ ह्रीं अंकुशायै स्वाहा ॐ ह्रीं निर्वाणायै स्वाहा
ॐ ह्रीं धारिण्यै स्वाहा
ॐ ह्रीं नर दत्रायै स्वाहा
ॐ ह्रीं अंबिकायै स्वाहा
ॐ ह्रीं सिद्धार्थकायै स्वाहा
त्रिमूर्त्या वेष्टयेत् लिया निरूद्धयाद्दडकुशिन
वारिभूमि पुरांतस्थं सुधी कुर्यातदंबुजं
(३५)
अर्थ:- फिर इस कमल को त्रिमूर्ति (ह्रीं ) से तीन चार वेष्टित करके क्रों से निरोध करे उसके बाहर जल मंडल और पृथ्वी मंडल बनावे |
आत्मनो वाम भागे च विलिस्खेत्पादुकाद्वयं दक्षिणे भूपुरा तस्या चक्रावस्था गुरोरपि
(३६)
अर्थ:- फिर अपने बांये भाग में दो पादुकायें भगवान को बनाये और दाहिने भाग में गुरू को भी बनाये ये पादुकायें पृथ्वी मंडल के अंदर बनी हुई हों
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