________________
SSCISIOISOTRICISIO5 विधानुशासन 985101510551065001510651 मानकेशस्तथा वृष्टिर्भवेदाशु
॥४॥ ॐ सेने द्विकरजित युक्तो प्रभंजिनी सुकेशिनि ठः ठः ॥ यह यक्षिणी देवी का मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है। इस मंत्र को जपकर अपने केशों को छूने से तुरंत वर्षा हो जाती है।
साध्य सारख्यात ममुं गोरोचनटा विलिरा भूर्जदले स्येतेन वैष्टियित्वा सूत्रेण स्थापयेदेतत
॥५॥
अश्वत्थ दुम कोटर मप्टो तत्राव तिष्टते यावत्
तत्तावत्साध्य स्थान्महती वृष्टि रविना मंत्री इस मंत्र को नाम सहित भोजपत्र पर गोरोधन से लिखकर तागे से लपेटकर पीपल के वृक्ष की खोखल में रखें। यह मंत्र जब तक यहाँ रखा रहता है तब तक साध्य के यहाँ बिना यिन के बड़ी भारी वर्षा होती है।
मंत्री रामेव तादहक रोहिणी तरु कोदुरो दरे यावत निहित स्तिष्ठति तावत साध्यं वश्यं विदध्यात्तुं
॥७॥ यह मंत्र उसी प्रकार से जब तक रोहिणी वृक्ष की खोखल में रखा रहता है तब तक साध्य भी उसके यश में रहता है।
त्रिभुवनसार मंत्रः आज भ म ह रेफ पिह: पाशांकुश वाण रंजिका युक्तः प्रणवाद्यैः कुसुमं त्रिन षट्कर्मा युदयम वगम्य ॥१॥
ॐबल्यू जल्च्यू म्ल्य्यू मल्टयू हल्ल्यू रमल्टए आं क्रों हीं क्लीं ब्लू ट्रां द्रीं संवौषट् क्षजभ मह और रेफ के पिंडों के पश्चात पाश (आं) अंकुश (क्रों) वाण ह्रीं क्लीं ब्लूं दो द्रीं (कामदेव के पाँय बाण और रंजिका (संयोषट) पल्लय सहित आदि में प्रणय (ॐ) लगाकर जपने से यह फूल रूपी मंत्र छहो कर्मों का उदय करता है।
द्वादश सहस्त्र जा ईशांश होमेन सिद्धिमुपटाति
मंत्रं त्रिभुवन सारो गुरू प्रसादात्स विज्ञेयः ॥२॥ यह मंत्र बारह हजार जप और दशांस होम से सिद्ध होता है। यह तीन भुयन में सार मंत्र गुरू की कृपा से जानना चाहिये। SSIODIDISTRI5051050015 २२९P352521501525015TOS