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e5959595952 विधानुशासन 25959596959
साधन विधिना देया शिष्येण न साधनाद्विना देया ।
विधिना गृहीत विद्या शिष्यो सौ लिउ विद्यः स्वात् ॥
अर्थ
• यह विद्या शिष्य को साधन और उसकी विधि सहित देनी चाहिये यह शिष्य पूर्वक विद्या पाकर तुरंत ही विद्या को सिद्ध कर लेगा ।
अयमेव विधिः योजयः स्यादन्येषां च मूल मंत्राणां ॥ उपदेशेऽष्वखिलेषु विधि द्वैवंत मात्र कृत स्तऋतु विशेष:
अर्थ :- अन्य मूलमंत्रों का उपदेश देने में भी इसी विधि से काम लेना चाहिये किन्तु उन सभी में केवल दो मात्राओं का विशेष है।
या विद्या ते विद्या ज्वालिन्या स्त्र्य क्षरी तिविदितान्या सान लिखितात्र गुरुभि स्तां विद्यांत्तन्मुखा देवि
॥ २१ ॥
अर्थः वह विशेष यह है कि ज्यालामालिनी का असली मंत्र तो यही है। किन्तु उस देवी का अक्षरी मंत्र है वह यहां नहीं लिखा गया है । वह केवल गुरू मुख से ही जाना जा सकता है।
इति
ज्वालामालिनी माला मंत्र
ॐ नमो भगवते श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय शशांक शंख गोक्षीर हारनीहार धवल गाय घाति कर्म निर्मूलनो छेदन कराय जाति जरामरण शोकं विनाश नाय संसार कांतारोन्मूलन कराय अचित्यं बल पराक्रमाय अप्रति हत शासनाय त्रैलोक्य वशंकराय सर्वसत्व हितं कराय सुरासुरो रगेन्द्र मणि मुकुट कोटि धृष्ट पाद पीठाय त्रैलोक्य नाथाय देवाधिदेवाय अष्टदश दोष रहिताय धर्म चक्राधीश्वराय सर्वविद्या परमेश्वराय कुविद्याघ्नाय तत्पाद पंकजाश्रय निषेवणि देवि जिन शासन देवते त्रिभुवन जन संक्षोभिणी त्रैलोक्य शिवाय हारिणि स्थावर जंगम कृत्रम विषम विष संहारिणी सर्वाभिचार कर्माप हारणि परविद्या छेदिनीं परमंत्र यंत्र तंत्र प्रणशिली अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनी काल दष्टमृतको च्छापिनी सर्वरोगापनोदिनी ब्रह्मविष्णु रुन्द्र चंद्रादित्य ग्रह नक्षत्र तारा लोकोत्पात मरणभय पीडा प्रमर्दिनी त्रिलोक्य महिते भव्य लोक हितकारी विश्वलोक वशंकर महाविद्ये महाभैरवे भैरव रूप धारिणी भीमे भीमरूप धारिनी सिद्ध सिद्ध रूप धारिणी महारौद्र रौद्ररूप धारिणि प्रसिद्धे प्रसिद्ध सिद्ध विद्याधर यक्ष राक्षस गरूड गांधर्व किन्नर किं पुरूष देत्यो रंगेद्रामर पूजिते ज्वाला माला करालित दिगंतराले महामहिष वाहिने त्रिशूल चक्र झष पाश कृपाण शर वरासन फल वर प्रदान (खङ्ग कृपाण त्रिशुल शक्ति चक्र
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