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PSPSPSPSS विधानुशासन 159595959595
अभिष्ट फलदा सौम्या वरदा वरदायिनी यक्षेन्द्र सुन्दरी रामा सुंदरी वरसुंदरी
सम्यग्दर्शन संपन्ना सम्यक् ज्ञान परायण सम्यक् चारित्र सहिता रत्नत्रय महानिधि
पुत्रावलालिनी पुत्र वत्सला गुणवत्सला पुत्ररत्नवती पुत्रवर्द्धनी पुत्ररक्षणों
जैनाधि देवता जैन महाशासन जननी मातृका मातामात पर्याय नामिका
यक्षि देवी शरणं संप्रपधे हमंजसा मंजुहा मंजुका मयतामा भमां वालमंबिका अंब
॥ ४६ ॥
॥ ४७ ॥
।। ४८ ।।
॥ ४९ ॥
॥ ५० ॥
जिनेन्द्र माराध्य यथा वदंबा देवीं समाराधयति क्रमाधः तस्यास्य जैनस्यदिनं दिनेपि सिद्धयंति सर्वाणि समीहितानि ॥ ५१ ॥
यक्ष्या स्तोत्र मिदं पठेदन दिनं तन्मूल विद्याजपेन्नित्यं यो विकलोप्पुदीरित जपे सा तस्य सिद्धोद्धवं ॥ ५२ ॥
तस्यास्यात्कविता गुर्णाद्भूत रसः सस्यात्कुशा ग्रीय घी स्तद्विधा प्रजपेन तस्य जगती स्याद् वाखितार्थ प्रदा इत्यंबिका स्तोत्रं
॥५३॥
जो
पुरुष श्री जिनेन्द्र भगवान की आराधना करके क्रम से विधिपूर्वक देवी की आराधना करता है उसको जिनेन्द्र भगवान की भक्ति के कारण सभी अभिलिखित वस्तुयें दिन प्रतिदिन सिद्ध होती जाती हैं। जो पुरुष यक्षिणी के हंस स्तोत्र को प्रतिदिन पढ़ता हुआ इसके मूल मंत्र का जप करता
देवी उसके जप में विकलता (अधूरापन) होने पर भी उसको निश्चय से सिद्ध हो जाती है। इस मंत्र के जपने से उस पुरुष में कविता करने की बड़ी भारी शक्ति, अद्भुत रस और अत्यंत तीव्र बुद्धि हो जाती है। यहां तक कि जगत में उसके इच्छा किये हुये सब कार्य सिद्ध होते हैं।
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POPE १८७P/595959595951951