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55 विद्यानुशासन 9650/5069519
आं क्रीं ह्री पंच वर्णे: लिखित षटदले चक्रमध्ये हस्कलीं क्रों कां पत्रांतराले स्वपरि कलिते वायुनावेष्टितांगी ह्रीं वेष्टथेत रक्त पुष्पै जपित दल महाक्षोभिणी द्राविणी त्वं त्रैलोक्य चालयंती सपदिजन हिते रक्षमां देवी पद्मे ॥ १३ ॥ पांच वर्ण (रंगो) से लिखित षटदल वक्र में जिसके दलोंच में आं क्रों ही हरकलीं क्रम से विद्यमान है। और पत्रों के बीच में ऊपर और नीचे क्रों क्रां बीच में विद्यमान है। अ आ इ ई इत्यादि स्वरों से घिरे हुवे और वायु मंडल से घिरे हुये औ ह्रीं से वेष्टित ऐसे कमल में स्थित, संसार का हित करने वाली, त्रैलोक्य को चलाने वाली, और लाल फूलों से जप करने पर क्षोभ पैदा करने वाली और द्रवित करने वाली हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो।
ब्रह्माणी काल रात्री भगवति वरदे चंडि चामुडिनित्ये । मातर्गाधारि गौरि घृति मति विजये कीर्तिही स्तुत्य प संग्रामे शत्रु मध्ये जय ज्वलन जले वेष्टिते न्यैः स्वरा स्त्रैः क्षां क्षीं क्षं क्षः क्षणा क्षत्तरिपु निवहे रक्षमां देवि पद्म
।। १४ ।।
ब्रह्माणि काल रात्रि भगवती वरदे चंडी चामुंडी नित्ये माता गांधारी गौरी घृती मती विजये कीर्ति ह्रीं स्तुत्य पद्मे इन १६ मातृका स्वरूपिनी स्वर रूपी जो अस्त्र है उनसे घिरी हुई युद्ध में शत्रुओं के बीच में अग्नि में जल में जिसने सब रिपु लोगों को आधे क्षण में नष्ट कर दिया है। ऐसी है पद्मावति देवीक्षां क्षीं क्षं क्षः इस मंत्र से हमारी रक्षा करें।
कोदंडकांडैर्मुशल हल किणैः वंन्टा नाराध चक्र: शक्त्या शल्य त्रिशूलै वरफण सफलै मुद्रार मुष्टिदंडे, पाशैः पाषाण वृक्षैर्वर गिरि सहितै दिव्य शस्त्र रूदस्त्र दुष्टानाम् दारयंती वर भुज ललितै रक्ष मां देवि पद्मे
॥ १५ ॥
तलवार, धनुषबाण, मूशल, हल, खुरपा, लोहे का बाण, चक्र, शक्ति शल्य ( लघुबाण) त्रिशूल गोफण (गोपिया) लकड़ी की मूठमाला, छोटा हत्यार (मुद्राल मूठ दंड नागपाश पहाड़ों से पत्थर बरसाना इन शस्त्रों से दुष्टों के हृदय को चीरती हुई अनेक भुजाओं से युक्त है। पद्मादेवी आप मेरी रक्षा करो।
भू विश्वेक्षण चन्द्र बिंब पृथिवी युग्मेक संख्या क्रमात् चंद्राभो निधि बाण रूप वसु दिक्छक खेचरे शादिषु ऐश्वर्य रिपु मारि विश्वभय हृत क्षोभांतरायान् विषान् लक्ष्मी लक्षण भारती गुरु मुखान्मंत्रानि मान् देविते ॥
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