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CTERISTISIONSIONSIDE विधानुशासन 95015521510500 हे भारती ! सर्वज्ञ अहंत भगवान की दिव्य ध्यनि सुनकर मतिज्ञान और श्रुतिज्ञान के अतिशय को धारण करने वाले आचार्यों ने आचारांग आदि बारह अंग और कालिक और उत्कालिकादि प्रकीर्णक शास्त्रों की रचनाकी तथा पधीस तत्यों की प्रकृति के सांख्य और त्रि पटक रूप शाक्य बोध चार्वाक आदि ने लौकिक ग्रंथों को बनाया। यह सब मोक्ष और भोग दोनों को प्रदण करने वाला आपका ही प्रताप है , अर्थात् सम्यकज्ञान और मिथ्याज्ञान दो रुप आपके है उनसे मोक्ष और संसार दो फल प्राणियों को मिलते हैं।
प्राह : सां व्यावहारिकार्य मषयो टान्नैगमा नटो: भूतार्थः प्रयते भवत्पद युषां तस्मात्किं मत्राद्भुतं चित्रं त्वेतदीय यत्पश नणां याद्दच्छिकी रे वगा:
श्रुत्वा शासति भूतभावि भवतः श्री वाणि युक्ता स्तत्वयी ॥६॥ हे श्री वाणी ! ऋषि लोगों ने नैगमादि नयों को बताकर संसार का व्यवहार सुचारू रूप से प्रवर्तित करने का उपाय बताया और उसके अनुसार सत्य तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। आश्चर्य तो इस बात का है कि मनुष्य और पशुपक्षियों की अपनी इच्छाधले गये यचजों को सुनकर आपके प्रताप से लोग भूत भविष्यत और वर्तमान तीनों कालों की बातों को स्पष्ट बतलातेहैं।
ह्रीं हंसः पर मंत्र वर्ण परिधि: व्यः कर्णिकं स्वा भिधाः पूर्वांतो नमसंश्चत्सूउपयोत्पत्रेषु नंदादिकाः अष्टौ षोडश रोहिणी प्रभतीकाः सेन्द्रा बहि ब्रह्मधी
म्भायो वीवृतमां स्थिता सरसिजं श्री देवी नंद्यात्सदा ॥७॥ हे सरस्वती देवी ! आप ऐसे कमल पर विराजती हैं जिसको कर्णिका में ही हंसः' तीन बीजाक्षर हैं पूर्व अंत में चार नमः है आठ दलों में नंदा आदि सोलह दलों में रोहिणी आदि देवियाँ है जो दस दिकपाल माया बीज पृथ्वी मंडल से घिरा हुआ है। अर्थात् वरूणाद दिक्पाल ऊपर ई ई ई ब्राह्मणे नमः पूर्व और इन्सान होकर क्रों से निरोधित है उसके बार पृथ्वी मंडल हैं।
वाग्दवादिन्यधिको वदौस भगवत्युक्तं सरस्वत्यपि श्री मायावभितं सि मूर्ति मुरवतं स्तेजो नमः श्चातंतः मंत्रोयं प्रवरः शशि दुति मितोः नुस्थत बीजो ज्वलं
स्वास्टा हत्कमल स्थिते तव मुरवाद् प्टोटो विशदवणिभिः ॥८॥ ह्रीं श्रीं यद यद वाग्वादिनी भवगती सरस्वती ही नमः॥ इस मंत्र का हृदय कमल में स्थापना करके जाप करें
050512852215250१४९ P50510151DISPERTOON