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हे भगवती सरस्वती ! तुम संसार में किसका उपकार नहीं करती। इसलिए तुम किसके ज्ञान करने योग्य नहीं हो ? जीव की सबसे हीन अवस्था निगोद है । उसमें तुम लब्ध्य अक्षर ज्ञान देकर जीवों को उपकृत करती हो। इसके बाद जीव की अवस्था निगोद से निकल कर जैसे जैसे पृथ्वी जल आदि स्थावर दो इंद्रिय आदि मनुष्य आदि संती पंचेन्द्रिय रूप से बदलती जाती है, वैसे वैसे बढ़ती बढ़ती श्रुतज्ञान प्रदान कर महा उपकार करती है। जब यह जीव ज्ञानावरणी आदि चार घातिया कर्मों को क्षयकर लोक अलोक के समस्त चर-अचर पदार्थों का ज्ञाता हो जाता है तो उस अवस्था में भी पूर्ण चिदशक्ति का विकास कर उसको उपस्कृत करती है, और जब आठों कर्मों का नाश कर जीव सिद्ध मुक्त हो जाता है तो उससमय भी तुम उन पर अनुग्रह कर अनंत सुखों का भोक्ता बनाती हो । इसप्रकार जीव की हर अवस्था में तुम अनुग्रह करती है ।
क्षेत्रेषु सहोपयुक्त वचन ज्योति विकल्पात्मया क्लेषा वर्तिषु वाच्य वाचक विकल्पानुक्रमानुग्रहात छेदाच्चानुपयुक्त वाग्मय विकल्प स्याक्षरादि च्छिदा स्यादांत क्रम निर्विभाग वपुषः श्री शारदऽध्येमिते
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हे शारदे ! तुम्हारा शरीर स्यात् पद के ग्रहण करने से क्रम और अक्रम रूप है। एक साथ प्रयोग किये हुवे वचन ज्योति के विकल्पात्मक होने से क्लेश पाते हुए क्षेत्रज्ञों पर वाच्य वाचक विकल्पों का अनुक्रम बनाकर तुम अनुग्रह करती हो। जो प्रयोग नहीं आ रहे हैं। ऐसे वचन विकल्पों में अक्षरादि का अभाव होने से, उसको गौण बना देती है।
लोकेन्यान्य मनु प्रविश्य परितोयाः संति वाग्वर्गणः श्रव्यात्म क्रम वृति वर्ण परता ता लोक यात्रा कृते नेतुं संविभजत्पुर प्रभृतिषु स्थानेषु यन्मारुतं तत्रायुष्मति भिंत तवं ततो दीयायुरानीमितत
हे आयुष्मति दीर्घजीवन वाली सरस्वती देवी इस लोक में भाषा वर्गणा सब जगह भरी पड़ी है और वे इतनी सघन हैं कि एक दूसरे में प्रविष्ट हैं। वे भाषा वर्गणायें लौकिक जनों के हितार्थ हृदय कंट तालु आदि स्थानों में हवा की प्रेरणा होने से कर्ण गोचर क्रमशः शब्द रूप बनती है उसमें आपका ही प्रभाव स्पष्ट मालूम पड़ता है।
अर्थात आत्मा के ज्ञान द्वारा ही भाषावर्गणायें शब्द रूप बनती हैं जिनको सुनकर लोग अपना सांसारिक व्यवहार चलाते हैं।
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सर्वज्ञ ध्वनि जन्य मत्यतिशयोद्रोक श्रुतैः सूरिभिः साध्वाचार पुरसरं विरचितं य त्कालिकाद्यं चयत् सांख्य शाक्य वचस्त्रयी गुरूवच श्चान्य च्चा लौकिकं सोयं भारति मुक्ति मुक्ति फलदः सर्वोनुभाव स्तव 959595959SPPA १४८ PSP5959696955
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