________________
252525252595_fdengpura 95PSPSI
595
आग्नेय कर्म के मंत्र में नमः लगा देने से यह सौम्य मंत्र हो जाता है और सौम्य मंत्र के अंत में फट लगा देने से वह आग्नेय मंत्र हो जाता है।
स्वायंकालो याम वहां जागरो दक्षिणे वह: आग्नेयस्य मतः सौम्यमंत्र स्यैतद्विपर्ययः
॥५॥
बायाँ स्वर चले तो स्वापकाल सूता हुया काल, दाहिना स्वर चले तो जाग्रतकाल अग्नि तत्व हो तब सौम्य मंत्र जपे तो उल्टा होता है।
प्रबोध कालं जानीयादुभयोरुभयोरपि स्वापकालेतु मंत्रस्य जपौनैव फलावहः
॥६॥
स्वापकाल में सोता हुदा चन्द्रस्वर में कार्य धीरे हो । सौम्य अथवा आग्नेय (उभय) दोनों ही के लिये प्रबोध (जाग्रत) काल जानना चाहिये। किन्तु जपने के समय स्थापंकाल होने से विशेष फल मिलता है।
वश्याकर्षण संतापे होमे स्वाहा प्रयोजयेत क्रोधोपशमने शांतौ पूजने च नमोभवेत्
वश्या आकर्षण और संताप के होम में स्वाहा शब्द का प्रयोग करें और क्रोध शांत करने में शांत कर्म में पूजन में नमः पद को लें ।
॥७॥
सं वषट् मोहन उद्दीपन पुष्टि मृत्युंजयेषु वा हुकारं प्रीति नाशे च छेदने मारणे तथा
112 11
संमोहन, उद्दीपन, पुष्टि अथवा मृत्युंजय में वषट तथा प्रीति नाशछेदन और मारण में हुं का प्रयोग
करें ।
उच्चाटने च विद्वेषे तथा चात्मकृते वषट विघ्न ग्रह विनाशे च हुं फट्कारं प्रयोजयेत्
उच्चाटन विद्वेषन और दूसरों को अपना बनाने में वषट तथा ग्रह का विघ्न नष्ट करने में हुं फट का प्रयोग करें।
मंत्रोद्दीपन कार्ये च लाभालाभे वषटस्मृतः एवं कर्मानुरूपेण तत्तन्मंत्र प्रयोजयेत्
॥ ९ ॥
॥ १० ॥
मंत्र का उद्दीपन करने लाभ और अलाभ में वषट का प्रयोग करें इस प्रकार हर एक कर्मों के अनुसार उस मंत्र का प्रयोग करें।
PSPAPSPSPSPSP १०३ Po959529695955