Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे मौन-मुनिभाव चरिष्यामि आसेविष्ये इति भावनया धर्म-दशाविध श्रुतचारित्रलक्षण च समेत्य अङ्गीकृत्य सहितम् एकामित्वस्यागमे निपिद्धत्वाद् द्विती यादि मुनिसहितः, तथा-मरजुकृता-मायारहितयाऽनुष्ठानपरायणः, निदान च्छिन्न-उिन्ननिदानः निदानशल्यरहितः, सस्तव-पूर्वपरिचितैः पिगदिभिः पश्चापरिचितै. श्वशुरादिभिश्च सह परिचय, जगात परित्यजेत् । तथा कामकाम = कामाभिलापरहिन , यद्वा-अामो-मोक्षः सफलविपयाभिलापनिरत्तिस्थानत्वात् , त कामयते य. स तथा, मोक्षामिलापीत्यर्थः, तथा-अज्ञातपी-यत्र कुलादौ साधोस्तपोऽनुष्ठानादिक न जानातितत्राहारादिगवेपक. सन् परिप्रजेद-अनियत
अन्वयार्थ-जो (मोण-मौनम्) मुनिभाव का में (चरिस्सामिचरिष्यामि) सेवन करूँगा इस भावना से (धम्म-धर्मम्) उत्तम क्षमा आदि रूप अथवा श्रुतचारित्ररूप धर्मको (समिच-समेत्य) अगीकार करके (सहिए-सहितः) द्वितीयादि मुनियो के साथ रहता है, एकाकी नहीं, क्यो कि अकेले रहनेका आगममें निषेध है। तथा (उज्जुकडेऋजुकृत) मायारहित होकर ही जो सयमरूपी अनुष्ठान परायण बना रहता है (णियाणछिन्ने-निदानछिन्न.) एवं निदानशल्य से वर्जित हुआ (मथव जहेज-सस्तव जह्यात्) पूर्वपरिचित पिता आदिके साथ तथा पश्चात् परिचित-श्वशुर आदिकों के साथ परिचय का त्याग कर देता है, एव (अकामकामे-अकामकामः) कामाभिलापरहित होकर अथवा मोक्षाभिलाषी बनकर ही (अन्नायएसी-अज्ञातैपी) साधुओं के तप अनुष्ठानादिक से अज्ञात-अपरिचित कुलो मे आहार आदि की गवेषणा ____मन्वयार्थ-2 मोण-मौनम् मुनि भानु चरिस्सामि-चरिष्यामि सेपन ४N मानाथी धम्म-धर्मम उत्तम क्षमा ३५ सय श्रुत शारित्र ३५ धमन समिच्च-समेत्य २५
मिशन सहिए सहित भी भनिमानी साथे २ छे ये नही ४.२९, मेसा रवाना मागममा निषेध छे तथा उज्जकडे-- ऋजुकृत भाया हित मनीनो अनुहानमा ५२सया मनी २ छ णियाणछिन्ने-निदानाच्छन्न. मन मिहान यथी त थईने सथव जहेज-सस्तव Tara પૂર્વ પરિચિત પિતા આદિની સાથે તથા પાછળથી જેની સાથે સ બ ધ બધાયે છે એવા શ્વશુર આદિની સાથેના પરિચયને ત્યાગ કરી દે છે અને अकामकामे-अकामझाम म मलिनापाथी २डित भनीन अथवा म.क्षालिलाषी मनीन अन्नायएसी-अज्ञातेपी साधुना त५ मनुन माहिथी पश्ििथत