Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ६.] पंचणाणावरणीयादीणं बंधवोच्छेदो
१३ तराइयाणमेगासीदिपयडीणं पढमं बंधो वोच्छिज्जदि, पच्छा उदओ (एत्थ उवसंहारगाहा
पुव्वुत्तवसेसाओ एगासीदी हवंति पयडीओ।
ताणं बंधुच्छेदो पुव्वं पच्छोदउच्छेदो ॥ १०॥) सेसाणं जहावसरमत्थं भणिस्सामा ।
मिच्छादिटिप्पहुडि जाव सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु उवसमा खवा बंधा । सुहुमसापराइयसुद्धिसंजदद्धाएं चरिमसमयं गंतूण बंधो बोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ६ ॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा- 'मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सुहमसांपराइयखवगा ' त्ति एदेण वयणेण अद्धाणं जाणाविदं । 'एदे बंधा, अवसेसा अबंधा त्ति' एदेण बंधस्स सामित्तं जाणाविदं । 'सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिजदि ' त्ति एदेण वि 'किं चरिमसमए बंधो वोच्छिज्जदि त्ति' पुच्छाए पढम-[ अपढम-] अचरिमपडिसेहमुहेण पडिउत्तरो दिण्णो । अवसेसाणं पुच्छाणं ण परिच्छेओ कदो। तेणेदं
और पांच अन्तराय, इन इक्यासी प्रकृतियोंका पहिले बन्ध नष्ट होता है, पश्चात् उदय । यहां उपसंहारगाथा
पूर्वोक्त प्रकृतियोंसे शेष जो इक्यासी प्रकृतियां रहती हैं उनका बन्धव्युच्छेद पहिले और उदयव्युच्छेद पश्चात् होता है ॥ १० ॥
शेष प्रश्नोंका अर्थ यथावसर कहेंगे
मिथ्यादृष्टिसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत उपशामक व क्षपक तक उपर्युक्त ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंके बन्धक हैं । सूक्ष्मसाम्परायिककालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युछिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ६॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है- 'मिथ्यादृष्टिसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक तक' इस वचनसे बन्धाध्वान ज्ञापित किया है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ' इससे बन्धका स्वामित्व ज्ञापित किया है। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतकालके अन्तिम समयमें जाकर वन्ध व्युच्छिन्न होता है' इससे भी क्या चरम समयमें बन्ध व्युच्छिन्न होता ? ' इस प्रश्नका प्रथम और [ अप्रथम-] अचरम समयके प्रतिषेधमुखसे प्रत्युत्तर दिया गया है। शेष प्रश्नोंका निर्णय यहां सूत्र में नहीं किया गया । इसीलिये यह देशामर्शक
१ प्रतिषु — संजदाए' इति पाठः।
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