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步步历历 步历 岁!
पदार्थ हैं, ते सर्व ही अपने द्रव्यविर्षे अंतर्मम जे अपने अनंतधर्म, तिनिके समूहळू चूंवते स्पर्शते हैं,
तोऊ परस्पर अन्यकू अन्य नाहीं स्पर्शते हैं। परि अल्पतनिधान एकाक्षेत्रावसाहरूप तिष्ठे हैं, तोऊ । 'सदाकाल निश्चयतें अपने स्वरूपतें नाहीं चिगते हैं याते पररूप नाहीं परिणमनतें अविनष्ट जे अपनी 卐 व्यक्ति तिनिकरि जैसी टाकीकी उपरी मूर्ति होय तैसे शाश्वत तिष्ठते है । याहीतें विरुद्धकार्य जे!
स्वभावतें:विपरीतकार्य अर विरुद्ध जे स्वभावरूपकार्य, तिनिका हेतुपणाकरि निरंतर समस्त....
परस्पर उपकार करे हैं, परंतु निश्चयकरि एकत्वनिश्चयपणाकं प्राप्त भये ही संदरपणाकं पावे हैं।' 1. जो अन्यत्रकार होय, तौ संकरव्यतिकरादि दोष हैं ते सर्वही आय पडें । ऐसें सर्वपदार्थनिकै भिन्न-1,
भिन्न एकपणा ठहरता संता जीव नामा जो समय, ताके बंधकी कथात विसंवादकी आपत्ति ।। 卐 होय है । काहेत ? जातें बंधकथाका मूल जो पुद्गलकर्म के प्रदेशनिमें तिष्ठना सो ही है मूल जाका, ___ ऐसा जो परसमयपणा, ताकरि उपजाया जीवकै परसमयस्वसमयरूप द्विविधपणा आया है। याते " 卐 समयकै एकपणा ही ठहरे हैं, यह ही सराहने योग्य है।
फ़ भावार्थ-निश्चततै सर्वपदार्थ अपने अपने स्वभावमैं ही तिष्ठते शोभा पावे हैं, यात जीव ... नामा पदार्थकै पुद्गलकर्मके निमित्तरूप अनादित बंधावस्था है, ताकरि याकै विसंवाद उपजे है,। - यातें शोभा न पावे है, तातें निश्चयकरि विचारियो, तो एकपणा ही सुंदर है, याहीते शोभा - "पावे है। ____ आगे कहे हैं, जो यह एकपणाका पावना दुर्लभ है । ताका गाथासूत्र
सुदपरिचिदाणुभूदा सव्वस्स वि कामभोगबंधकहा। एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलभो विभत्तस्स ॥४॥
श्रुतपरिचितानुभूता सर्वस्यापि कामभोगबंधकथा । एकत्वस्योपलंभः केवलं न सुलभो विभक्तस्य ॥ ४ ॥
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