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9 भया । बहुरि कैसा है ? न्यारे न्यारे द्रव्यनिके गुण जे अवगाहनगतिस्थिति वर्तना हेतुपणा
तथा रूपीपणा तिनिके अभावतें अर असाधारणचैतन्यरूपपणास्वभावके सदावतें अन्यद्रव्य ।। जे आकाश, धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल इनितें भिन्न है। इस विशेषणते एकही ब्रह्मवस्तु । माननेवालाका व्यवच्छेद भया। बहुरि कैसा है ? अनंत अन्यद्रव्यनितें अत्यंत संकर कहिये एकक्षेत्रावगाहरूप होतें भी अपने स्वरूपते न छूटनेते टंकोत्कीर्ण चैतन्यस्वभावरूप है। इस विशेषगत वस्तुस्वभावका नियम जनाया है। ऐसा जीव नामा पदार्थ समय है। सो यह जिस काल' सकलपदार्थ निके स्वभाव भासनेवि समर्थ ऐसी विद्या जो केवलज्ञान ताका उपजावनहारा जो.. भेदज्ञानज्योति ताका उदय होनेरौं समस्त परद्रव्यनितें छुटिकरि दर्शनज्ञानविर्षे निश्चितप्रवृत्तिरूपक
जो आत्मतत्व तिसते एकपणारूप लीन होय प्रवर्ते, तिसकाल दर्शनज्ञानचारित्रवि तिष्टनेतें अपने " स्वरूपकू एकतारूप करि एककाल जानता तथा परिणमता संता स्वसमय कहावे है।
बहुरि जिस काल अनादिअविद्यारूप कंदली है मूल जाका ऐसा कंदज्यौं पुष्ट भया जो मोह, म ताके उदयके अनुसार प्रवृत्तिके आधीनपणाकरि दर्शनज्ञानस्वभावविर्षे निश्चितवृत्तिरूप जो आत्म卐 तख, तातें छुटिकरि, अर परद्रव्य है निमित्त जाकू ऐसा जो मोहरागद्वेषादिभाव तिनिविर्षे एकता-:
रूप लीन होय प्रवर्ते, तिस काल पुद्गलकर्म के प्रदेश जे कार्मणस्कंध तिनिविर्षे तिष्ठनेते, परद्रव्यकू..
आपते एकपणा करि एककाल जाणता तथा रागादिरूप परिणमतासंता, परसमय ऐसा प्रतीतिरूप - कीजिये है । ऐसें इस जीव नामा पदार्थके स्वसमय परसमय ऐसा दोय प्रकारपणा प्रगट होय है।
__भावार्थ-जीव नामा वस्तूकू पदार्थ कह्या, सो पद तो जीव ऐसा अक्षरसमूहरूप है और 卐 इस पदकरि द्रव्यपर्यायरूप अनेकांतात्मकपणा निश्चित कीजिये सो पदार्थ है। सो ऐसा पदार्थ के
उत्पादव्ययधौव्यमयी सत्तास्वरूप है । बहुरि दर्शनज्ञानमयी चेतनास्वरूप है । बहुरि अनंतधर्मस्वरूप.. द्रव्य है । बहुरि द्रव्य है सो वस्तु है । बहुरि गुणपर्यायवान् है । बहुरि स्वपरप्रकाशकज्ञान अनेका-5 काररूप एक है । बहुरि आकाशादिकते भिन्न असाधारण चैतन्यगुणस्वरूप है। बहुरि अन्यद्रव्य...