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था, युद्ध की अकारण हिंसा के कारण घबस गई और स्वयं आत्मदाह कर लिया। पराजित शासक ने जब कन्या के आत्मदाह की बात सुनी तो उसे बड़ा दुःख हुआ और लज्जा का अनुभव किया। उसने सभी से लौटने का आग्रह व अनुरोध किया। किन्तु पुनः लौट जाना, 'अत्याचारी शासन में रहना लोगों ने स्वीकार नहीं किया।
इन्हीं निष्कासित लोगों ने कन्या के नाम पर पद्मावती नगरी बसाई और स्वयं पद्मावती पुरवाल कहने लगे। उन्होंने अपनी सामाजिक व्यवस्था का नवीनीकरण किया। अपने प्रधान को सिरमौर कहने लगे और पंडित को पाण्डे, जो पुरोहित का कार्य करता था और प्रबंधक को सिंघई शब्दों से संबोधित किया। इस प्रकार पद्मावती पुरवाल जाति का उद्भव हुआ।
इसी कथानक से मिलता जुलता एक कथानक श्री रामेश्वर दयाल गुप्त, हरिद्वार ने 'वैश्य समाज का इतिहास' में पृष्ठ 28/7 पर इस प्रकार दिया है
मुगलकाल में एक सूबेदार के दीवान का नाम शाहसूर था। उसकी रूपवती कन्या का नाम पद्मावती था जिससे मुगल सूबेदार ने डोला मांगा था। वह रातोंरात राज्ये से निष्कमण कर गये। पर मुगल सैनिकों ने आ घेरा। इसी बीच पद्मावती का विवाह सगाई वाले जाति बन्धु से हो गया, पर युद्ध में पति मारा गया। तब पद्मावती सती हो गई। गुप्त स्थान का नाम पद्मावती माना गया। इस नाम का एक कुण्ड बिहार में भी है।
4. कहा जाता है कि पार्श्वनाथ भगवान पर जब घोर उपसर्ग हुआ तो पाताल लोक के पद्मावती धरणेन्द्र का आसन कम्पायन हुआ। वह उपसर्ग दूर करने के उद्देश्य से धरणेन्द्र अपने दो रूपों में उपस्थित हुआ-आसन बनकर तथा छत्र बनकर । इसी समय भगवान को केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई। लोगों ने सर्प के रूप में रक्षा करते हुए धरणेन्द्र को देखा तो गद्गद् हो गये। लोगों ने बाद में सभी स्थान को अहिछत्र के नाम से प्रसिद्ध
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास