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समाज की युवा पीढ़ी और फण्ड कमेटी के युवा उत्साही कार्यकर्ताओं को कमेटी की वर्तमान स्थिति और प्रगति की गति पर सन्तोष नहीं है। वे चाहते हैं कि इसका स्थाई फण्ड ज्यादा से ज्यादा बढ़े और सहायतार्थ दी जाने वाली राशि में भी वक्त के हिसाब से बढ़ोतरी कर समाज के निर्बल, असहाय और जरूरतमंद वर्ग की उचित और पर्याप्त सहायता की जाये ।
युवावर्ग की यह बेचैनी और असन्तोष की भावना समाज के लिए शुभ संकेत और जागरूकता का प्रतीक माना जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि अधिक से अधिक लोग इसके आजीवन और वार्षिक सदस्य बने । साधन-सम्पन्न लोग वार्षिक / मासिक सहायता अथवा इकमुश्त राशि प्रदान कर चंचला लक्ष्मी का परोपकार में सदुपयोग कर धर्मलाभ उठायें। शादी-विवाह तथा जन्म-दिवस आदि के शुभ अवसरों पर धर्मार्थ दान के समय फण्ड कमेटी के लिए भी समुचित राशि अवश्य निकालें/निकलवाने में सहयोग करें। इस प्रकार आप समाज को समृद्ध समुन्नत और शिक्षित बनाकर समाज सेवा का श्रेय पा सकते हैं।
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संयम का महत्व
जैसे जल के बिना कुंए का, सुगंध के बिना पुष्प का, और मूर्ति के बिना मन्दिर का कोई महत्व नहीं है, उसी प्रकार संयम सदाचार के बिना मानव जीवन निरर्थक है। ये मानव शरीर एक ऐसे रथ के समान है, जिसमें इन्द्रियरूपी पांच घोड़े जुते हुए हैं। मन उसका सारथी है। यदि वह संयमित और संतुलित हैं तो रथ को सही मार्ग पर ले जाएगा, अन्यथा विषयासक्त चित्त तो हमेशा कुमार्गगामी ही होता है।
- दैनिक भास्कर, ललितपुर : 4-9-95 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास